आज के इस ब्लॉग पोस्ट में आप भगवान श्री कृष्ण कि कहानियां जानने वाले हैं। इसमें हमने कृष्ण की कुछ बाल- लीलाओं के विषय में भी चर्चा किया है जो बच्चों को ज़रूर पसंद आएँगी। हम भगवान कृष्ण को कई रूप में देखते हैं जैसे बाल पन में लीलाएं करते हुए, माखन चोरी करते हुए, राधा और कृष्ण को रास करते हुए और कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता का सार समझाते हुए।
भगवान कृष्ण कहानियां की लीलाएं पौराणिक काल से ही बच्चों और बड़ों, बूढ़ों सभी को बेहद पसंद आती है श्री कृष्ण कि ऐसी ढेर सारी कहानियां हैं जो हम सभी के लिए ज्ञान और मनोरंजन का भंडार हैं। भगवान श्री कृष्ण के जन्म की कथा से लेकर वृंदावन में उनके फैली शरारतों की कहानियां बहुत ही अद्भुत है उन कहानियों से हमें सकारात्मक चीजें सीखने को मिलती हैं।
कृष्ण एक महान योद्धा होने के साथ ही सिद्धांतवादी और एक आदर्श पुरुष भी थे कृष्ण की कहानियां और गीता के उपदेश हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण हैं। भगवान कि इन कहानियों को हमने सरल भाषा में प्रस्तुत किया है जिसको सभी आयु के लोग पढ़कर समझ सकें और आनंद लेने के साथ-साथ ज्ञान भी प्राप्त कर सकें, अगर आप भगवान कृष्ण की कहानियां हिंदी में अच्छे से पढ़ना चाहते हैं तो मेरे इस ब्लॉग पोस्ट को अंत तक ध्यान से पढ़ें।
भगवान श्री कृष्ण कि कहानियां
आगे आप ऐसी कई सारी, भगवान श्री कृष्ण कि कहानियां “Lord Krishna Stories in Hindi” पढ़ सकते हैं और आत्मज्ञान की ओर अग्रसर हो सकते हैं भगवान की इन कहानियों से आप जीवन के महत्वपूर्ण सवालों के जवाब जान सकते हैं जैसे की भगवद-गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि,” सब कुछ एक कारण या अच्छे कारण से होता है जीवन में जो कुछ भी होता है अच्छे के लिए होता है और उसके पीछे हमेशा एक कारण छुपा होता है।”
तो चलिए बिना समय गवाएं भगवान के ज्ञान के महासागर में डूबकर अपनी चेतना को आगे बढ़ाते हुए अपने आनंद को एक अद्भुत सैर पर ले चलें।
सुदामा और श्री कृष्ण
बचपन में भगवान श्रीकृष्ण और बलराम उज्जैन में स्थित ऋषि सांदीपनि के आश्रम में पढ़ते थे वहां उनके कई मित्रों में से एक सुदामा भी थे वहां पर सुदामा और श्री कृष्ण दोनों की बहुत अच्छी मित्रता हुई, सुदामा एक कृष्णा के खास मित्र होने के साथ-साथ कृष्ण के भक्त भी थे, वो एक गरीब ब्राह्मण के पुत्र थे। सुदामा और कृष्ण भिक्षा मांगने के लिए आश्रम से नगर कि ओर जाते और फिर आश्रम में आकर भिक्षा गुरु मां के चरणों में रखने के बाद ही भोजन करते थे। लेकिन सुदामा को बहुत भूख लगती थी तो वे चुपके से कई बार तो रास्ते में ही आधा भोजन चट कर जाते थे।
एक बार की बात है गुरु मां ने सुदामा को एक पोटली में चने बांध कर देते हुए कहा,”लो इसमें से आधे चने कृष्ण को भी दे देना, और दोनों जाकर जंगल से लकड़ियां बिन लाओ।” दोनों जंगल से लकड़ियां बीनने निकल जाते है तभी अचानक वहां बारिश होने लगती है तभी दोनों एक शेर को देखकर उसे भयभीत होकर पेड़ पर चढ़ जाते हैं फिर सुदामा उस पोटली में से चेन निकालकर खान लग जाता है।
इतने में कृष्ण को खाने के कि आवाज़ आती है कृष्ण ने कहा,”अरे ये कट कट की कैसी आवाज आ रही है, सुदामा तुम कुछ खा रहे हो क्या?”सुदामा ने कहा,”नही! ये तो सर्दी के मारे मेरे दांत कट-कटा रहें हैं।” ये बात सुनकर कृष्ण फिर बोलते हैं,”अच्छा बहुत ज्यादा सर्दी लग रही है क्या तुम्हे।” सुदामा हां बोलता है, इतना सुनकर श्री कृष्ण ने कहा,”मुझे भी बहत सर्दी लाग रही है मैंने ऐसा सुना है की कुछ खाने से शरीर में गर्मी आ जाती है चलो लाओ वो चने दो जो गुरु माता ने हमें दिए थे दोनों मिल बांटकर खाते हैं।”
सुदामा बोलते हुए,’’अरे कृष्ण चने कहां हैं वो तो पेड़ पर चढ़ते समय मेरे हाथ से कीचड़ में गिर गए, ये बहाना सुनकर कृष्ण सब समझ जाते हैं और कहते हैं,” अच्छा ये तो बहुत बुरा हुआ।”ये कहते हुए नीचे की डाल पर बैठे भगवान श्रीकृष्ण अपने चमत्कार से हाथों में चने ले जाते हैं और ऊपर चढ़कर सुदामा को देकर कहते हैं पेड़ पर फल तो नहीं हैं लेकिन मेरे पास ये चने जरूर हैं तभी सुदामा ने कृष्ण से पूछा,”यह तुम्हारे पास कहां से आए? फिर कृष्ण बोलते हैं,” कि वो मुझे भूख कम लगती है ना, पिछली बार गुरुमाता ने जो चने दिए थे वह अभी तक मेरी अंटी में बंधे हुए थे, लो अब इसे जल्दी से खा लो।” यह सुनकर सुदामा कहता है,” नहीं नहीं, मैं इसे नहीं ले सकता हूं।”तब श्रीकृष्ण पूछते हैं,’’क्यों नहीं ले सकते हो? सुदामा रोते हुए कहता है,’’ क्योंकि मैं इसका और तुम्हारे मित्रता का भी अधिकारी नही हूं मैंने तुम्हें धोखा दिया है कृष्ण मैं कपटी हूं, कृपया मुझे क्षमा कर दो।” कृष्ण ने कहा,”अरे सुदामा ये तुम क्या कर रहे हो जिसे अपना मित्र कहते हो उसी से क्षमा मांगकर मुझे लज्जित ना करो मित्र।….इस तरह से दोनों में सुलह हो जाती है और फिर एक बार श्री कृष्ण सुदामा को वचन देते हैं की मित्र! तुम जब भी खुद को संकट में पाना तो अपने इस मित्र को जरूर याद करना, मैं तुम्हारी मदद जरूर करुंगा।
कृष्ण माखन चोर की कहानी
भगवान श्री कृष्ण बचपन में बहुत शरारती थे। उन्होंने अपने बाल्यपन में कई बार माखन की चोरी कि हैं कभी गोपियों की मटकी फाेड़ दिया करते थे, तो कभी बछड़ों को गायों का पूरा दूध पिला देते थे गोकुल की गोपियां चाहकर भी प्यारे-से, नटखट कृष्ण को डांट नहीं पाती थीं, क्योंकि उनकी शरारतों को देखकर उन्हें दुलारने का मन करता था कान्हा ने ऐसी ही लीलाओं से माखन भी चोरी की थी। ये तो सभी जानते हैं की कान्हा को माखन कितना प्रिया था, अपने लल्ला को माता यशोदा जितना माखन देती वो उनके लिए कम पड़ जाता। इसलिए मैया जहां भी माखन रखती कान्हा की नजर वहीं रहती, मैया के हटते ही कृष्ण चुपके से गांव के सारे बच्चों के साथ मिलकर सारा माखन खा जाते थे।
ऐसा कई दिनों से चल रहा, यशोदा मैया को कुछ समझा नहीं आ रहा था की माखन जा कहां रहा है उन्हें कुछ तरकीब सूझी, एक दिन मैया ने चुपके से माखन से भरे छोटे-छोटे घड़ों को रस्सी के सहारे ऊपर टांग दिया, लेकिन कृष्ण की नजरों से क्या छुप सकता है, उन्हाेंने मैया को माखन रखते हुए देख लिया। अब कृष्ण ये सोचते लगे की मैया ने माखन रख दो दिया पर इस तक कैसे पहुंचा जाए, काफी ज्यादा सोचने के बाद उन्होने सारे मित्रों को इक्ट्ठा किया ओर बोले,”सभी एक घेरा बनाओ उसके ऊपर चढ़कर माखन निकला जाएगा। जैसे कृष्णा ने कहा सभी ने वैसा ही किया और इस तरह से नटखट कृष्ण और उनके सारे दोस्तों ने मिलकर पूरा माखन चट कर दिया।
जब मैया ने देखा की फिर वही हुआ तो उन्होंने ठान लिया की,”आज मैं देखकर ही रहूंगी की माखन की चोरी कौन करता है।”इतना कहकर वह माखन को मटकी में रखकर ऊपर टांग देती हैं और छुपकर देखने लगीं, कुछ ही देर में कान्हा अपने दोस्तों के साथ वहां पहुंच जाता है यह देखकर मैया को पूरी बात समझ में आ गई की अब तक चोरी कौन कर रहा था सभी वहां माखन लूट कर खा ही रहे थे इतने में मैया यशोदा वहां पहुंच गईं। मैया को देखते ही सभी बच्चे वहां से भाग गए, लेकिन श्री कृष्ण मटकी की रस्सी पकड़ कर वहीं झूल रहे थे।
मैया ने आकर अपने लल्ला को नीचे उतरा और प्यार से डांटते हुए कहा,” अच्छा! तो तुम हो वो माखन चोर, जिसने मुझे इतना परेशान किया है। कृष्ण मैया को देखकर हंसने लगे और बोले “मैया मैं नहीं माखन खायो।” इस पर मैया बोली कि,”अपनी ही मैया से छूठ बोलते हो लल्ला।”कन्हैया की भोली-सी सूरत देखकर और उसकी प्यार भरी बातें सुनकर मैया ने कृष्ण को अपने गले से लगा लिया और बोलने लगीं मेरा प्यारा नटखट माखन चोर।…. बस उसी दिन से श्री कृष्ण को प्यार से माखन चोर कहकर बुलाया जाने लगा।
राधा कृष्णा कि कहानी
राधा वृषभानु नाम के एक गोप की पुत्री थीं कुछ विद्वान मानते हैं कि राधा का जन्म यमुना नदी के पास स्थित रावल गांव में हुआ था बाद में उनके पिता बरसाना में आकर बस गए थे। हालांकि कुछ लोगों का यह मानना है कि राधा का जन्म बरसाना में ही हुआ था बरसाना में राधा जी को लाडली कहा जाता है ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, राधा जी कृष्ण से चार साल बड़ी थीं और उनकी मित्र थीं। जब कृष्ण आठ साल थे, तो उनकी मुलाकात राधा से हुई, जो 12 साल की थीं। श्रीकृष्ण राधा से प्रेम करने लगे, दोनों एक दूसरे से विवाह भी करना चाहते थे। लेकिन जब ये बात राधा के घर वालों को मालूम हुई तो उन्होने राधा को घर में ही कैद कर दिया। राधा के घर वाले बोलते थे की राधा की मगनी हो चुकी है ऐसा कहा जाता है की श्री कृष्ण राधा रानी से विवाह करने के लिए जिद्द कर दिय थे।
इसलिए यशोदा माता और नंदबाबा ने उन्हें ऋषि गर्ग के पास ले गए, जहां पर ऋषि गर्ग ने भी कान्हा को काफी समझाया। उसके बाद कान्हा वृदावन छोड़कर सदा सदा के लिए मथुरा चले गए। उन्होंने राधा से वादा किया था कि वह वापस लौटेंगे, लेकिन वह कभी वापस नहीं आए।…..राधा कान्हा से अनन्य प्रेम करती थीं लेकिन जब वह मथुरा गए तो राधा रानी खुद को महलों के जीवन के लिए योग्य नहीं मानती थीं। लोग चाहते थे कि श्रीकृष्ण एक राजकुमारी से विवाह करें, इसलिए राधा ने श्रीकृष्ण से विवाह न करने की ठान ली। ओर बाद में उन्हें ऐसा एहसास हुआ की श्री कृष्ण भगवान का अवतार हैं तो राधा खुद को भक्त मानने लगी थीं राधा श्री कृष्ण की भक्ति में लीन रहने लगीं थीं और वह अपने भगवान से विवाह नही कर सकती थीं।
कृष्ण की बांसुरी की कहानी
ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान शिवजी बाल्यापन में कृष्ण को देखने आए तो उन्होंने ऋषि दधीचि की हड्डी को घिसकर एक सुंदर एवं मनोहर बांसुरी का निर्माण किया था जब शिव जी भगवान श्री कृष्ण से मिलने गोकुल पहुंचे तो उन्होंने श्री कृष्ण को भेट स्वरूप वह बांसुरी प्रदान की थी। और उन्होंने आशीर्वाद भी दिया तभी से भगवान श्री कृष्ण उस बांसुरी को अपने पास रखते हैं। उसके बाद से वह अपने राधा रानी के साथ एवं अपनी गोपियों के साथ हर रास में बासुरी बजाया करते थे जब भी वो गईया चराने जाते थे तब सारे सखा और सखियां कृष्ण के साथ उनकी बांसुरी की मधुर वाणी का आनंद उठाते और बांसुरी की मधुर धुन में लीन हो जाते।
जब भी गइया किसी दिशा में चरने चली जाती थी तो श्रीकृष्ण की बांसुरी सुनकर सारी गायें लौट आती थींं। जब भी राधा रानी उनसे रुष्ट हो जाती थीं तब श्री कृष्ण अपनी बांसुरी के सहायता से उनको मोहित कर लेते थे और ऐसी ही दोनों की नाराजगी दूर हो जाती थी। उन्होंने बांसुरी की सहायता से सभी का मनोरंजन भी किया है और जब भी कृष्ण बांसुरी बजाते सारे नगर वासी नाच पढ़ते थे। बांसुरी के संबंध में एक धार्मिक मान्यता यह है कि जब बांसुरी को हाथ में लेकर हिलाया जाता है तो बुरी शक्तियां और आत्माएं दूर हो जाती हैं और जब इसे बजाया जाता है तो घरों में शुभ चुंबकीय प्रवाह का प्रवेश हो जाता है।
श्री कृष्ण जब राधा रानी और सारी गोपियों को छोड़कर मथुरा जा रहे थे तब उस रात महारास हुआ जिसमें उन्होंने ऐसी बांसुरी बजाई थी की सारी गोपिकाएं बेसुध हो गई थी ऐसा कहा जाता है कि उसी रात श्रीकृष्ण ने राधा रानी को वह बांसुरी भेंट कर दी थी जिसके बाद राधा रानी ने भी निशानी के तौर पर उन्हें अपने आंगन में गिरा एक मोर पंख उनके सिर पर बांध दिया था।
यहां तक कि ये भी कहा जाता है की आखिरी समय में भगवान श्रीकृष्ण राधा रानी के सामने आ गए, और उन्होंने राधा से कहा कि वे उनसे कुछ मांग लें, लेकिन राधा ने मना कुछ भी मांगने से साफ मना कर दिया। फिर भी कृष्ण ने दुबारा अनुरोध किया जिस पर राधा रानी ने कहा कि वो उन्हें एक आखिरी बार बांसुरी बजाते हुए देखना और सुनना चाहती हैं ये सुनते ही कृष्ण ने अपनी बांसुरी ली और बेहद सुरीली धुन में बजाने लगे। श्रीकृष्ण ने दिन-रात बांसुरी बजाई, अंततः एक दिन बांसुरी की धुन सुनते-सुनते राधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया।
कृष्ण के सिरदर्द का इलाज
एक बार श्री कृष्ण के जन्मादिवस के अवसर पर उत्सव मनाने के लिये बहुत बड़ी तैयारियाँ की गयी थी, नृत्य संगीत से लेकर भोजन तक! बहुत लोग इकट्ठा हुए भीड़ बढ़ती ही जा रही थी लेकिन पर श्री कृष्ण घर में ही बैठे रहे, शायद वो उत्सव में शामिल नहीं चाहते थे। वैसे तो कृष्ण हर तरह के उत्सव के लिये हमेशा तैयार ही होते थे, पर आज उनका मन ही नही था कुछ भी करने का ऐसा लग रहा था की कृष्ण वहां हैं ही नही।
तभी रुक्मणी कृष्ण के पास आकर उनकी उदासी और उत्सव में मग्न ना होने का कारण पूछने लगती हैं,”श्री कृष्ण, आपको क्या हो गया है? कोई बात आपको सता रही है क्या? आप उत्सव में शामिल क्यों नहीं हो रहे? कृष्ण बोले, “मुझे सिरदर्द बहुत तेज है”।उनको सही में सिरदर्द था या नहीं! या हो भी सकता है या कृष्ण नाटक कर रहे हों, क्योंकि उनमें वो योग्यता थी।
अचानक कृष्ण बोले,”जो कोई मुझे वाकई में प्यार करता हो, वो अपने पैरों की धूल अगर लाकर मेरे सिर पर मल दे तो शायद मैं ठीक हो जाऊँगा”। रुक्मिणी ने कहा, “हमें तुरंत वैद्यों को बुलाना चाहिए।” वैद्य आए और उन्होंने श्री कृष्ण को हर तरह की दवाइयां दीं लेकिन कुछ नहीं हुआ, तभी कृष्ण बोले, “नहीं वैद्य जी, ये सब दवाईयां मुझ पर कोई असर नहीं करेंगे। तब तक बहुत सारे लोग इकट्ठा हो गये थे। सभी को कृष्ण की चिंता हो रही थी लोगों ने पूछा, “तो हमें क्या करना चाहिये?” इतने में नारद भी वहां आये, कृष्ण के सिरदर्द को लेकर हर कोई परेशान था। सभी ने कहा, कैसे आराम होगा इसका उपचार बताइए।”
कृष्ण फिर बोले, “कोई, जो मुझे वाकई में प्यार करता हो, वो अपने पैरों की धूल अगर मेरे सिर पर मल दे तो मैं ठीक हो जाऊँगा”। सत्यभामा बोली, “ये क्या बात हुई? मैं आपसे बहुत प्रेम करती हूँ लेकिन ये हो ही नही सकता कि मैं अपने पैरों की धूल लेकर आपके सिर पर लगाऊँ। रुक्मिणी भी राइट हुए बोली, “हम ये कैसे कर सकते हैं ये तो आपका अनादर और अपमान होगा। नारद भी पीछे हट गये, “मैं ऐसा कुछ भी करना नहीं चाहता आप स्वयं ही भगवान हैं मुझे नहीं मालूम कि इसमें क्या रहस्य है, पता नहीं इसमें कौन सा जाल होगा? अगर मैं अपने पैरों की धूल आपके सिर पर रखूँगा तो हमेशा नरक कि अग्नि में तपूंगा, मैं ऐसा कोई भी काम करना नहीं चाहता।”
चारों और हड़कंप मच गया था बात फैल गयी थी। हर कोई सकते में था, “हम ये काम नहीं कर सकते। हम सब उन्हें बहुत प्यार करते हैं पर ऐसा कर के हम नरक में जाना नहीं चाहते।” वहां उत्सव मनाने के लिये जश्न आगे बढ़ाने के लिए लोग कृष्ण का इंतज़ार कर रहे थे पर कृष्ण अपना सिरदर्द ले कर बैठे थे।
फिर ये बात वृंदावन तक पहुँची। गोपियों को मालूम पड़ा कि कृष्ण को सिरदर्द है। तब राधा ने अपनी साड़ी का पल्लू (फाड़ कर) ज़मीन पर बिछा दिया और सारी गोपियाँ को उसपर नाचने को कहा और सारी गोपियां ने ऐसा ही किया सब नाचने लगीं। फिर राधा नई उस पल्लू को नारद को देते हुए कहा, “इसे ले जाईये और कृष्ण के सिर पर बाँध दीजिए।” नारद वो धूल भरा पल्लू ले आये और उसे कृष्ण के सिर पर बाँध दिया। जैसी ही वह धूल भरा पल्लू कृष्ण के सिर पर बंधा गया उनका दर्द तुरंत ठीक हो गया!….. कृष्ण ने हमेशा स्पष्ट रूप से बताया था कि उनके लिये कौन सी चीज सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण थी? हालांकि वे बड़े-बड़े राजाओं के साथ घूमते थे और उन्हें बहुत से राज्य भेंट किये गये पर उन्होंने वे नहीं लिये। उनके लिये यही सच्चा, निस्वार्थ, सरल प्रेम ही महत्वपूर्ण था, जिससे राधा भली भांति परिचित थी।
श्री कृष्ण और कालिया नाग
बाल्यपन में भगवान कृष्ण ने ऐसी लीला दिखाई जिससे कालिया नाग का घमंड चूर चूर हो गया, जब भगवान बाल रूप में मैया यशोदा के साथ गोकुल में रहते थे तो गोकुल में बहने वाली यमुना नदी में ही कालिया नाग रहता था वह इतना ज्यादा जहरीला था की उसके विष से यमुना नदी का पूरा पानी काला पड़ चुका था जिससे गांव के लोग और पशु पक्षी उस जहरीले जल को पीकर मरने लगे थे पूरा गोकुल इस समस्या से परेशान था इसी डर से गांव के लोग अपने जानवरों और बच्चों को नदी की तरफ नहीं जाने देते थे।
भगवान श्री कृष्ण ने किसका उद्धार नही किया था वह सब कुछ जानते थे तब भगवान ने कालिया नाग को सबक सिखाने कि ठान ली। एक दिन श्री कृष्ण ने अपने सभी मित्रों को इकट्ठा किया और यमुना नदी के पास खेलना चल गए। सब डर रहे थे लेकिन कृष्ण ने सभी को सांत्वना देते हुए कहा,” मैं हूं ना, कुछ नही होगा।” सब कृष्ण की बात मानकर गेंद खेलने लग जाते हैं तभी अचानक श्री कृष्ण गेंद खेलते-खेलते यमुना नदी के किनारे पहुंच गए, जिससे उनकी गेंद नदी में गिर जाती है गेंद की वजह से खेल बीच में ही रूक गया।
अब गेंद लाने के लिए कोई तैयार नही हो रहा था क्योंकि सब को पता था की कालिया नाग नदी में रहता है इसलिए कोई भी जाने को तयार नही हुआ तो कृष्ण ने कहा,”गेंद को लाने मैं ही जाऊंगा, क्योंकि मैंने ही उसे नदी में गिराया है।” सारे मित्रों ने उन्हें ऐसा करने से रोका लेकिन श्री कृष्ण ने किसी की बात नहीं सुनी और नदी में छलांग लगा दी।
काफी देर हो चुकी थी फिर भी कृष्ण नदी से बाहर नही आए, तब सारे बच्चे बहुत ज्यादा डर गए और भागते हुए मैया यशोदा को जाकर पूरी बात बताई, जिससे मैया यशोदा डर के मारे रोने लगी, और अपनी सूझबूझ खोकर नदी की तरह दौड़ने लगी। पूरे गांव में हड़कंप मच गई थी पूरा गांव मैया यशोदा के पीछे-पीछे भागने लगा।
नदी में कृष्णा को देखकर कालिया नाग कि पत्नियों ने कहा,”ये लो पुत्र तुम्हारी गेंद और जल्दी यहां से चले जाओ, अभी हमारे पति गहरी निद्रा में हैं उनके उठने से पहले चले जाओ।”, लेकिन भगवान ने जाने से मना कर दिया और उन्हें समझाते हुए कहा,”मैया गेंद तो बस एक बहाना है मैं आपके पति से ही मिलने आया हूं मुझे कुछ भी नही होगा, आप लोग घबराई मत।”, तभी कालिया नाग जाग जाता है भगवान उसे चेतावनी देते हुए बोलते हैं,”अगर अपने प्राण सही सलामत चाहते हो तो यमुना नदी को छोड़कर कहीं और चले जाओ।”
श्री कृष्ण कि बात सुनकर कालिया नाग बोलता है, “मैं तुम्हें चेतावनी देता हूं यहां से चले जाओ नही तो मेरे जेहर से बच नही पाओगे।” दोनों में भयंकर युद्ध शुरू हो गया, जिससे देवी देवताओं भी डर गए थे। काफी देर तक युद्ध चलता रहा, जिससे नदी में ऊंची ऊंची लहरें उठने लगीं, अब मैया यशोदा के आंसू रुक नही रहे थे और गोकुलवासी भी घबराने लगे थे। कालिया नाग ने श्रीकृष्ण पर भयंकर विष से हमला किया, लेकिन विष के भगवान पर कोई असर नहीं हुआ, भगवान कालिया नाग के फन पर खड़े हो गए जिससे कालिया को तुरंत एहसास हुआ कि यह कोई साधारण बालक नही है।
अंततः उसने कृष्ण से माफी मांगी, भगवान ने कालिया को यमुना छोड़ने के लिए बोला,”मैं तुम्हे क्षमा करता हूं तुम वापस अपने स्थान रमणक द्विप पर लौट जाओ।” इसपर कालिया नाग ने कहा,”हे प्रभु! वहां गरुड़ पक्षी मुझे मार डालेगा, उसी से जान बचाकर अपनी रानियों को लेकर मैं यहां आ गया था क्योंकि सौभरी ऋषि के श्राप के कारण गरुड़ यमुना नदी के पास नही आ सकता।”भगवान ने कहा,”तुम चिंता मत करो, वो अब तुम्हे कुछ नही करेगा क्योंकि मेरे चरणों के निशान तुम्हारे फन पर हैं उसे देखकर गरुड़ तुम्हारा कुछ नही करेगा, चलो! मुझे अब बाहर ले चलो।”
कृष्ण कि आज्ञा लेकर कालिया भगवान को अपने फन पर उठाकर पानी से बाहर आ गया, जिसके बाद श्री कृष्ण कालिया नाग के फन पर नृत्य करने लगे। यशोदा मैया और नंद बाबा साथ ही सारा गोकुलवासी कृष्ण कि यह लीला देखकर अचंभित हो गए थे सभी लोग खुशी के मारे नाच रहा थे उधर देवी देवताएं भी भगवान कि लीला देखकर मोहित हो गए थे जिसके बाद कालिया नाग अपनी पत्नियों के साथ अपने स्थान पर वापास लौट गया। भगवान श्री कृष्ण को सही सलामत देखकर मैया यशोदा ने उन्हें अपने गले से लगा लिया और पूरा गोकुलवासी बहुत खुश था।……कालिया नाग पर विजय पाने को भी नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है।
कृष्ण और पूतना असुर
मथुरा नगरी में कंस का राज्य अभिषेक हो जाने के बाद कंस ने अपने राज्य मथुरा में आतंक फैला दिया ! उसने कई नवजात बच्चों को उनकी माताओं से छीन कर हत्या कर दी, धीरे-धीरे समय बीतता गया और एक दिन जब नंदराय जी मथुरा नगरी पहुंचे और उन्होंने महाराज कंस को बताया कि हमारे घर एक पुत्र ने जन्म लिया है इस बात पर महाराज कंस ने उन्हें बधाई दी, क्योंकि नंदराय जी गोकुल के अधिपति थे इसी कारण महाराज कंस नंद जी का बड़ा आदर करते थे फिर कंस ने उनसे पूछा,” आपके पुत्र का जन्म कब हुआ था।” नंद जी बोले, अष्टमी के दिन हमें पुत्र की प्राप्ति हुई।”
यह सुनकर राजा कंस क्रोध से तिल मिलाकर आपने कक्ष में चला जाता है और अपने विशेष मंत्री चारुड़ से बोलता है की,” देवकी के अष्टम गर्भ से जो बालिका ने जन्म लिया था, वो भी अष्टमी का दिन था इस तरह से कंस को पता चल जाता है की किसी ने उसे धोखा देकर, देवकी के अष्टम गर्भ से जन्मे बालक को छल से बदल दिया गया था, इसलिए कंस ने बाबा नंद के पुत्र को मारने के लिए एक योजना बनाई और इसलिए राक्षसी पूतना को बुलाया गया।
पूतना का शरीर बहुत ज्यादा बड़ा था बड़े बड़े दांत, वह कंस के आज्ञा से गोकुल आती है और एक सुंदर ब्राह्मणी का भेष धारण कर लेती है फिर वह नंद जी के घर पहुंच कर उनसे कहती है,”मैं मथुरा की रहने वाली हूं और मेरे पति एक सिद्ध ब्राह्मण है जिन्होंने अपने दिव्य दृष्टि से देखा कि नंद जी के घर एक दिव्य बालक ने जन्म लिया है जो बहुत ही अद्भुत है, उतने में वहां मईया यशोदा भी आ जाती हैं, पूतना मैया से बोलती है,”मैं आपके पुत्र के दर्शन करने आई हूं।”मुझे एक सिद्धि प्राप्त हुई है जो भी मेरे स्तन से दूध पीता है वो बच्चे अमर हो जाता है, अगर आपकालल्ला भी पिएगा तो वह भी अमर हो जाएगा।”इस तरह से पूतना अपनी मीठी-मीठी बातों से बाबा नंद ओर मैया यशोदा को फसा लेती है। जिसके बाद वह भगवान श्री कृष्ण को अपने गोद में उठा लेती है और उसे खिलाने लगती है फिर एक कक्ष में जाकर अपने स्तन का जहरीला दूध भगवान श्री कृष्ण को पिलाने लगती है।
पूतना को इस बात का अंदाजा नही था कि उसने एक चमत्कारी बालक से पंगा ले लिया है जैसे ही पूतना उसे अपना दूध पिलाती है तो उसके जहर का असर उल्टा पूतना पर ही होता है जिससे उसको अत्यंत पीड़ा होने लगती है और वह अपने असली रूप में आ जाती है और भगवान को लेकर हवा में उड़ जाती है। वह चिलाती है चीखती है,”छोड़ मुझे। कई प्रयासों के बाद भी भगवान श्री कृष्ण उन्हें छोड़ते नही है।
अंततः सारा का सारा विश पूतना को ही चढ जाता है जिसकी वजह से वो पास के एक जंगल में आकर गिर जाती हैऔर राक्षसी पूतना वहीं पर मर जाती है । सब भागते भागते जंगेल की तरफ जाते हैं और यह देखकर यशोदा मैया और नंद बाबा परेशान हो जाते हैं इतनी बड़ी राक्षसी पूतना जमीन पर मरी पड़ी हुई थी और भगवान श्री कृष्ण उसके विक्राल शरीर पर खेल रहे थे। छटपटाते हुए मैया यशोदा तुरंत कान्हा को अपने गले से लगा लेती हैं। इस चमत्कार को देखकर गोकुल वासी यशोदा के लल्ला को एक चमत्कारी बालक कहकर सम्बोदित करने लगे।……..इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने राक्षसी पूतना को मार गिराया था और ऐसे कई राक्षस और असुर आए लेकिन किसी ने भी भगवान श्री कृष्ण का बाल भी बांका नही कर सके।
निष्कर्ष
तो दोस्तों आप सभी अच्छी तरह से जान गए होंगे कि भगवान श्री कृष्ण “(Lord Krishna Stories)”आज के इस पोस्ट मैंने आपको भगवान श्री कृष्ण से जुड़ी शिक्षा और प्रेरणादायक कहानियां बताई है जो हमारे जिंदगी में एक सही लक्ष्य चुनने में हमारी मदद करेगी।
उनकी कहानियों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है जैसे कि हमें अच्छे कर्म करते रहना चाहिए और व्यर्थ की बातों में अपना समय नष्ट नही करना चाहिए और न ही किसी से डरना चाहिये। और अगर सच कहूँ तो श्री कृष्णा का पूरा जीवन ही एक पाठ है, उनके जीवन से हमें पग-पग पर सीख मिलती है, जिन बातों को अपनाकर हम अपने जीवन को आसान बना सकते हैं उनकी कहानियां और शिक्षाएं भगवद गीता जैसे हिंदू शास्त्रों में पाई जाती हैं।
भगवान अपने प्यार, करुणा और ज्ञान के लिए जाने जाते हैं वे लोगों के बीच प्रेम, करुणा और शांति का प्रचार करते थे हिंदी में इनको कई नामों से जाना जाता है, जैसे कृष्ण, कन्हैया, गोपाल, केशव, श्याम, द्वारिकाधीश, और वासुदेव आदि। ऐसा कहा जाता है कि वे हिंदू धर्म के देवता हैं और विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं।
हमें आशा है की यह ब्लॉग पोस्ट को पढ़ने के बाद आपको “भगवान श्री कृष्ण” के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी, अगर आपको ये जानकारी अच्छी लगी हो तो अपने सभी दोस्तों में शेयर करें।
प्रश्नोत्तर
Ans: कृष्ण का जन्म भारत के मथुरा में एक जेल में हुआ था उनके माता-पिता वासुदेव और देवकी को कृष्ण के दुष्ट मामा कंस ने कैद कर लिया था। कृष्ण के जन्म की रात, वासुदेव ने उन्हें तस्करी से जेल से बाहर निकाला और यमुना नदी के तट पर स्थित एक गाँव गोकुल ले गए।
Ans: कंस के डर से वासुदेव ने नवजात बालक को रात में ही यमुना पार गोकुल में यशोदा के यहाँ पहुँचा दिया, गोकुल में उनका लालन-पालन हुआ था यशोदा और नन्द उनके पालक माता-पिता थे।
Ans: भगवान हिंदू धर्म में सबसे लोकप्रिय देवताओं में से एक हैं वो विष्णु के आठवें अवतार हैं, जो हिंदू धर्म में सबसे ऊंचे स्थान पर हैं भगवान नटखट और शरारती स्वभाव के साथ-साथ अपनी गहरी बुद्धि और करुणा के लिए जाने जाते हैं श्री कृष्ण को बांसुरी बजाना अत्यंत प्रिय था और साथ ही उन्हें गायों, दूध और मक्खन से बड़ा प्रेम था।
Ans: वह एक जटिल और आकर्षक चरित्र है, उनकी कहानियां रोमांच, उत्साह और रोमांस से भरी हैं, कृष्ण एक बुद्धिमान और दयालु शिक्षक भी हैं और उनकी शिक्षाओं ने सदियों से लोगों को प्रेरित किया है।
Ans: कृष्ण कि 16,108 रानियां थीं।
Ans: भगवान श्री कृष्ण के 80 पुत्र और एक चरुमति नाम की पुत्री थी जिसका जिक्र भागवत पुराण में नाम मात्र ही किया गया है।
Ans: रुक्मिणी भगवान श्री कृष्ण की सबसे प्रिय पत्नी थीं उन्होंने श्रीकृष्ण से प्रेम विवाह किया था और रुक्मिणी को लक्ष्मी का अवतार भी माना जाता है।
Ans: किशोरावस्था में मीरा श्रीकृष्ण को अपना पति मान बैठी थी, इसलिए तो मीरा कृष्ण भक्ति में लीन होकर हमेशा गाया करती थी हालांकि मीराबाई का विवाह महाराणा सांगा के साथ हुआ था लेकिन शादी के पहले दिन ही मीरा ने अपने पति से कह दिया कि उनके पति केवल श्रीकृष्ण हैं।
Ans: गोलोक! जो भगवान श्री कृष्ण और उनकी प्रमुख पत्नी राधा का आकाशीय निवास है।
Ans: भगवान श्री कृष्ण की बांसुरी “जॉर्ज ईस्टमैन” म्यूजियम में है।
विकास तिवारी पिछले 3 सालों से पैसे कैसे कमाएं, बिज़नेस आइडियाज, और इंटरनेट से जुडी जानकारी आप सभी के साथ साझा कर रहे हैं। किसी भी टॉपिक को आसान भाषा में बताना इन्हें अच्छा लगता है।