51+ बच्चों की कहानियां, मजेदार और सीख के साथ (2023) | Kids Stories in Hindi

बच्चों को मनोरंजन के साथ सीख देने का सबसे अच्छा माध्यम बच्चों की कहानी होता है। अगर बच्चों को बचपन से ही सीख नहीं दिया जाएगा तो वे सही और अच्छी बातें नहीं सीख पाते हैं इसलिए उन्हें सही कहानी सुनना और समझना जरुरी है। 

अब समय बदल गया है, लोग इंटरनेट के माध्यम से ही bacchon ki kahani को पढ़ते हैं जैसे पंचतंत्र की कहानी, राजा रानी की कहानी, अकबर बीरबल की कहानी, शेर चूहे की कहानी, खरगोश की कहानी इत्यादि।

जब लोग इंटरनेट पर bachcho ki kahaniya ढूंढते हैं तो उन्हें बच्चो की अच्छी कहानियां जल्दी नही मिलती है इसलिए मैने इस ब्लॉग पोस्ट में आपके लिए चुन चुनकर सीख देने वाली और सबसे अच्छी बच्चों को कहानियों का लिस्ट दिया है।

आप जितना ध्यान लगाकर और अच्छे से kids stories in hindi पढ़ते हैं वह कहानी आपको उतने ही अच्छे से समझ में आता है इसलिए इस ब्लॉग पोस्ट को अंत तक ध्यान से पढ़ें।

बच्चों की कहानियां – bacchon ki kahani kids stories hindi

नीचे आप 50 से भी अधिक bacchon ki kahani का लिस्ट देख सकते हैं।

हाथी और भालू की कहानी – Kids Stories in Hindi

हाथी और भालू की कहानी - Kids Stories in Hindi

एक जंगल में एक हाथी रहता था जो की बहुत ही दयालु था। वह मुसीबत के समय में सारे जानवरों की सहायता किया करता था, उसके स्वभाव के कारण जंगल के सभी जानवर हाथी पे जान दिया करते थे। एक दिन हाथी को बहुत प्यास लगती है और वो नदी के किनारे जाता है जहां उसने देखा कि एक बड़े से पत्थर के नीचे एक मगरमच्छ दबा हुआ दर्द से कहरा रहा है।

हाथी ने मगर से पूछा, “मगरमच्छ भाई! तुम इस पत्थर के नीचे कैसे दब गये?” फिर मगरमच्छ ने कराहते हुए जवाब दिया, “क्या बताऊं हाथी भाई! खाना खाने के बाद नदी किनारे आराम करने आया था पता नहीं कहां से चट्टान का बड़ा टुकड़ा मेरे ऊपर आ गिरा। भाई मुझे बहुत दर्द हो रहा है मेरी मदद कर दो, इस पत्थर को हटा दो मैं तुम्हारा एहसानमंद रहूंगा।”

मगर की बात सुनने के बाद हाथी को उसपर दया आ जाती है, लेकिन एक तरफ उसको यह डर भी था कि मगर उसपर हमला न कर दे। हाथी ने उसने पूछा, “देखो मगरमच्छ भाई! मैं तुम्हारी मदद तो कर दूं, लेकिन तुम वादा करो कि मुझ पर हमला नहीं करोगे।” फिर मगरमच्छ वादा करता है की ऐसा कुछ नहीं होगा।

हाथी ने अपने बल से मगरमच्छ के पीठ से उस भारी पत्थर को हटा दिया। लेकिन जैसे ही पत्थर हटा उस धूर्त मगरमच्छ ने झट से हाथी का पैर अपने जबड़े में दबा लिया। तभी हाथी कराह के बोला,” मगरमच्छ भाई ये तो धोखा है। तुमने तो वादा किया था।” फिर भी मगरमच्छ ने हाथी का पैर नही छोड़ा। तभी हाथी दर्द से चीखने लगा। थोड़ी ही दूर पर एक पेड़ के नीचे भालू आराम कर रहा था। हाथी की चीख सुनते ही वह नदी किनारे आया। हाथी को उस हालत में देख के उसने पूछा, “ये क्या हुआ हाथी भाई?”

हाथी ने कराहते हुए जवाब दिया “हाथी ने कराहते हुए मगमच्छ के पत्थर के नीचे दबे होने की सारी कहानी बता दी। इस दुष्ट मगरमच्छ की मैंने सहायता की और इसने मुझ पे ही हमला कर दिया। मुझे बचाओ।” इतने में भालू बोला,” क्या कह रहे हो हाथी भी मैं नहीं मानता की ये मगरमच्छ पत्थर के नीचे दबा हुआ था और फिर भी ज़िन्दा था।

हाथी की पैरों को तेज से दबाते हुए मगरमच्छ गुर्राते हुए कहा,” ऐसा ही हुआ था। तभी भालू यह मानने से मना कर देता है इतने में हाथी भी बोलता है,”ऐसा ही हुआ था भालू भाई। भालू दिमाग का इस्तेमाल करते हुए बोलता है, “मुझे दिखाओ! बिना देखे तो मैं नहीं मानने वाला नहीं कि ये मगरमच्छ कैसे उस पत्थर के नीचे दबा हुआ था और उसके बाद भी ज़िन्दा है। हाथी भाई ज़रा फिर से इस मगरमच्छ की पीठ पर पत्थर रखकर दिखाओ, फिर बाद में उसे हटाकर दिखाना।”

फिर मगरमच्छ ने हाथी का पैर छोड़कर नदी के किनारे चला गया। और हाथी से कहा की वह भारी पत्थर मेरे ऊपर रख दो। मगरमच्छ भालू से बोला, “ये देखो! मैं ऐसे इस पत्थर के नीचे दबा था अब यकीन आया तुम्हें। तभी हाथी ने आकर पत्थर से मेरी जान बचाई थी। चलो हाथी अब पत्थर हटा दो।” मगरमच्छ बोला।

फिर भालू बोला,“नहीं हाथी भाई! ये मगरमच्छ मदद के काबिल है ही नहीं इसे ऐसे ही दर्द में पड़े रहने दो। चलो हम चले।” हाथी और भालू वहाँ से चले जाते हैं लेकिन मगरमच्छ वहीं पत्थर के नीचे दबा पड़ा रहा। उसकी धूर्तता का फल उसे अब मिल चुका था।

सीख:

जो भी हमारी सहायता करें हमें उसके लिए एहसानमंद होना चाहिए। अपनी बुद्धि का उपयोग करके किसी भी कठिनाइयों का सामना किया जा सकता है।

नन्ही चिड़िया की कहानी – बच्चों की कहानियाँ 

नन्ही चिड़िया की कहानी - बच्चों की कहानियाँ 

एक समय की बात है, एक घने जंगल में छोटे से लेकर बड़े सभी पक्षी व जानवरों का बसेरा था। उसी जंगल में एक पेड़ पर घोंसला बनाकर नन्हीं सी चिड़िया भी रहा करती थी। एक दिन जंगल में भीषण आग लग जाती है। जिसके कारण सभी पक्षियों व जानवरों में हड़कंप मच जाता है सब अपनी जान बचाकर यहां से वहां भागने लगते हैं।

नन्ही चिड़िया जिस पेड़ पर रहा करती थी उस पर भी आग लगने के कारण उसे अपना घोसला छोड़ना पड़ा। लेकिन उसने अपनी हिम्मत नही हारी और न ही आग देखकर वह घबराई। नन्ही चिड़िया तुरंत नदी के पास जाती है और अपनी चोंच में जितना पानी भर सकती है वह भर के वापस जंगल की ओर लौटी और अपनी चोंच में भरा पानी आग में छिड़ककर वह फिर नदी की ओर चली गई। इस तरह से वह अपनी चोंच में पानी भरकर बार-बार वह जंगल की आग में डालने लगी।

उसको ऐसा करते देख जंगल के सभी जानवर हस्ते हुए कहने लगे,”अरे चिड़िया रानी, ये क्या कर रही हो, चोंच भर पानी से इस घने जंगल की आग बुझा रही हो, तुम्हारे ऐसा करने से जंगल की आग थोड़ी ना भूझेगी अपनी मूर्खता छोड़ो और प्राण बचाकर वहां से भागो।”

उन सभी की बात सुन नन्ही चिड़िया बोलती है,”तुम लोगों को भागना है, तो भागो मैं कहीं नहीं भागूंगी। ये जंगल मेरा घर है और मैं अपने घर की सुरक्षा के लिए अपना पूरा प्रयास करूंगी, मैं अपने घर को कुछ नही होने दूंगी, फिर इसमें कोई मेरा साथ दे या ना दे।”

चिड़िया की ऐसी बातें सुनकर सभी जानवरों के सिर शर्म से झुक गए, उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। फिर सभी जानवरों ने नन्हीं चिड़िया से माफी मांगी और उसके साथ मिलकर जंगल में लगी हुई आग बुझाने के कोशिश में जुट गए। अंततः उन सभी की मेहनत रंग लाई और जंगल में लगी आग भी बुझ गई।

सीख

मुसीबतें चाहें कितनी भी बड़ी क्यों न आ जाए, बिना प्रयास किए कभी भी हार नहीं मानना चाहिए, बल्कि उन मुसीबतों का डट कर सामना करना चाहिए।

बीरबल की चतुराई की कहानी – Bacchon ki Kahani

बीरबल की चतुराई की कहानी - Bacchon ki Kahani

एक बार की बात है जब राजा अकबर सो कर उठे तो उनको बहुत तेज प्यास लगी हुई थी। उन्होंने अपने सेवकों को पानी के लिए आवाज लगाई लेकिन किसी ने भी उनकी आवाज का जवाब नहीं दिया। राजा के काफी आवाज देने पर एक सफाई करने वाला व्यक्ति राजा को पानी लाकर दिया। 

राजा को बहुत ज्यादा प्यास लगी थी इसलिए उन्होंने उस सफाई करने वाले के हाथ से लेकर पानी पी लिया। दोपहर का समय था राजा की बहुत तबीयत खराब हो गई यहां तक की उनको देखने के लिए राज वैद्य और राज पंडित भी आए।

जब राज वैध की दवा देने के बाद भी राजा अकबर ठीक नहीं हुए। फिर राज पंडित ने राजा को बताया की आप पे किसी मनहूस व्यक्ति का परछावा पड़ गया है। जब राजा को यह बात मालूम हुई फिर उन्हे ध्यान आया कि उन्होंने सुबह सफाई करने वाले व्यक्ति के हाथों से पानी लेकर पी लिया था।

उन्होंने यह सोचा ये जरूर उसी का परिणाम है। राजा अकबर ने तुरंत उस व्यक्ति को बंदी बनाकर मृत्युदंड की सजा देने की ठान ली। बीरबल को जब राजा के स्वास्थ्य के बारे में मालूम हुआ तो वह भी राजा अकबर का हालचाल जानने के लिए उनके पास आए।

वहां जाने पर बीरबल को ये मालूम पड़ता है कि राजा ने सफाई करने वाले व्यक्ति को मनहूस कहकर उसे मृत्यु दंड की सजा सुनाई है। बीरबल से रहा नही गया, वो तुरंत उस व्यक्ति से कारावास में मिलने गए और उसे विश्वास दिलाकर आए की तुम्हे कुछ नही होगा।

कारावास से निकलने के बाद बीरबल सीधा राजा के दरबार में जाकर राजा से कहते है की,” मैं आपको इस राज्य के सबसे बड़े मनहूस व्यक्ति से भेंट करवाऊंगा जो की उस साफ सफाई करने वाले व्यक्ति से भी ज्यादा मनहूस है तब तो आप उसे छोड़ दोगे।”

अकबर, बीरबल की बात से सहमत थे। फिर बीरबल ने कहा कि,”आप स्वयं ही उस व्यक्ति से ज्यादा मनहूस है अगर आप उस व्यक्ति के हाथ से पानी पीने की वजह से बीमार पड़ गए तो बेचारा उस व्यक्ति की तो नसीब ही खराब थी जो सुबह सुबह आपको पानी दिया, आप से मिलने की वजह से उसे मृत्युदंड की सजा मिल गई”।

इससे ये साफ मालूम होता की उस व्यक्ति के लिए आप ज्यादा मनहूस हुए। बीरबल ने हंसते हुए राजा अकबर से कहा की,”लेकिन आप अपने आप को मृत्युदंड की सजा मत दे देना”।

इतना कहकर बीरबल हंसने लग जाते है। अकबर को भी अब अपनी गलती का एहसास हो गया था उन्होंने उस सफाई करने वाले व्यक्ति को छोड़ देने का हुकुम दिया। इस तरह बीरबल की चतुराई के कारण उस साफ सफाई करने वाले व्यक्ति की जान बच गई। 

सीख

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की हम अपनी सूझबूझ का इस्तेमाल करके किसी भी मुसीबत का हल आसानी से निकाल सकते है।

मेंढक और चूहा की कहानी 

मेंढक और चूहा की कहानी 

एक जलाशय में एक मेंढक रहा करता था उसका कोई भी दोस्त नहीं था वह खुद को एकदम अकेला महसूस करने लगा, जिसके कारण वह मेंढक हमेशा उदास रहता था। वह अपनी उदासी और अकेलापन दूर करने के लिए भगवान से अच्छा सा दोस्त मिलने की प्रार्थना किया करता।

उसी जलाशय के पास ही एक पेड़ के नीचे बिल में एक चूहा रहता था जो की बहुत ज्यादा हसमुख स्वभाव का था। एक दिन चूहा यहां वहां घूम रहा था तभी उसकी नज़र उदास बैठे मेंढक पर जाती है और वह उसके पास गया और बोला, “कैसे हो मित्र तुम?”

मेंढक उदासी भरे आवाज़ में बोलता है,”मैं एकदम अकेला हूं मेरा कोई मित्र नहीं है इसलिए मैं उदास हूं”। तभी चूहे ने मेढ़क के आगे एक प्रस्ताव रखा,”तुम उदास मत हो मैं हूं ना, मैं बनूंगा तुम्हारा दोस्त, जब भी तुम खुद को अकेला महसूस करो या समय बिताना चाहो मेरे बिल में आ सकते हो।

चूहे की ये बात सुनकर मेंढक बहुत ही ज्यादा खुश हो गया, उस दिन के बाद से दोनों अच्छे खासे दोस्त बन गए, वो दोनों जलाशय के किनारे कई घंटे गपशप करते। मेंढक अब खुश रहने लगा था।

एक दिन मेंढक को एक तरकीब सूझी और उसने चूहे से कहा की, “क्यों न हम दोनों रस्सी के दोनों छोर अपने पैरों से बांध लें। जब भी मुझे तुम्हारी याद आयेगी, मैं रस्सी को खीचूंगा और इस तरह से तुम्हें पता चल जायेगा।” चूहा भी राजी हो गया और दोनो ने एक रस्सी ढूंढी और दोनो छोर अपने अपने पैरों में बांध लिया।

ऊपर आसमान में मंडराता हुआ बाज़ यह सब देख रहा था चूहे को अपना शिकार बनने के लिए उसने उस पर झपट्टा मारा, इतना देखते ही मेंढक डर गया और अपना जीवन बचाने के मारे जलाशय में छलांग लगा दी। लेकिन वह भूल गया था की रस्सी का दूसरा सिरा अब भी चूहे के पैरों में बंधा हुआ है, चूहा भी खींचा हुआ पानी में चला गया और डूब कर मर गया।

कुछ समय के बाद चूहे का शव जलाशय के ऊपर तैरने लगा और बाज की नजर भी उसी शव पर थी उसने उस पर झपट्टा मारा और पानी में बहते हुए चूहे के शव को अपने पंजे में पकड़ कर ले उड़ा, उसी के साथ मेंढक भी साथ में चला गया क्योंकि रस्सी का एक सिरा अब भी मेंढक उसके पैर में बंधा हुआ था।

सीख

मूर्ख लोगों से कभी भी दोस्ती नहीं करनी चाहिए।

एक ऊंट की कहानी – Best Kids Stories in Hindi

एक ऊंट की कहानी

एक ऊंट का बच्चा अपनी मां से बात कर रहा था बच्चे ने अपनी मां से उत्सुकता से प्रश्न पूछा,”मम्मी, हमें कूबड़ क्यों है?” ऊंटनी ने कहा,” बेटा हम रेगिस्तान में रहने वाले जीव हैं हमारे पीठ पर जो कुबड़ है उसमें पानी जमा हो जाता है इससे हम कई-कई दिनों तक बिना पानी के रह सकते हैं। ताकि रेगिस्तान में हमारा शरीर वहां से पानी इस्तेमाल कर सकें।”

फिर उस बच्चे ने पूछा,” हमारा तलवा गोल क्यों है?” ऊंटनी ने फिर समझाया की रेगिस्तान की जमीन रेतीली होती है गोल तलवे हमे आराम से चलने में मदद करते हैं।

बच्चा फिर एक और सवाल अपनी मम्मी से पूछता है, “मम्मी, हमारे आंखों की पलक इतनी ज्यादा बड़ी बड़ी क्यों है?” ऊंटनी ने एक बार फिर से बच्चे को समझाया,” हमारी पलकें इसलिए इतनी बड़ी बड़ी है क्योंकि लंबी पलकों से रेगिस्तान में हमारी आंखें धूल मिट्टी से बची रहेंगी, यह पलकें हमारी रक्षा कवच है”।

उस बच्चे ने बड़े ही मासूमियत के साथ एक आखिरी सवाल और पूछा,”अगर हमारे शरीर की सारी चीजें मरुस्थल के हिसाब से ही बनी हुई है तो हम यहां चिड़ियाघर में क्या कर रहें है मां।”

सीख

आपका ज्ञान, जानकारी और शक्ति किसी भी काम नहीं आयेगी, अगर उसका उपयोग आप सही जगह पे नही कर रहे हैं।

बंदर और मगरमच्छ की कहानी – Bachchon ki Kahani

एक समय की बात है एक तालाब में एक मगरमच्छ रहता था जो काफी ज्यादा बूढ़ा हो चुका था। बड़ी मुश्किल से वो अपना शिकार कर पाता था। जिसके कारण उसे कई दिनों तक भूखा रहना पड़ता था। एक दिन वह तालाब में मछलियां पकड़ने गया क्योंकि वो अब काफी बुड्ढा हो गया था इसलिए उसके हाथ एक भी मछलियां नहीं आई।

जिस तालाब में मगरमच्छ मछलियां पकड़ने गया था। उसी तालाब के किनारे एक जामुन का पेड़ था, जिसके जामुन काफी ज्यादा मीठे थे। उसी पेड़ पर एक बंदर जामुन खा रहा था मगरमच्छ ने बंदर से कहा की,” मैं काफी दिनों सी भूखा हूं कृपया मुझे थोड़े से जामुन दे दो।”

फिर बंदर ने मगरमच्छ को थोड़े जामुन तोड़कर दे दिए। जिसे मगरमच्छ खाकर बहुत ज्यादा खुश हो गया। इस तरह जब भी मगरमच्छ अपना शिकार नहीं कर पाता, तो वह बंदर से जामुन मांग लिया करता था जिसके बदले मगरमच्छ बंदर को अपने पीठ पर बैठाकर तालाब की सैर कराता।

इस तरह कुछ दिनों में बंदर और मगरमच्छ अच्छे दोस्त बन गए। फिर एक दिन मगरमच्छ ने बंदर से कहा की,” तुम मुझ कुछ जामुन तोड़कर दे दो मैं अपनी बीवी को खिलाऊंगा तो वो इतने ज्यादा मीठे जामुन खाकर खुश हो जाएगी।”

मगरमच्छ के कहने पर बंदर ने थोड़े से जामुन तोड़कर उसे दे दिया। जिसे मगरमच्छ के जाकर अपनी बीवी को देता है। जैसी ही उसकी बीवी ने जामुन खाया वो उस जामुन की तारीफ किए बिना रह ना पाई, उसने कहा, ” वाह कितने मीठे जामून हैं अगर ये जामुन इतने ज्यादा मीठे हैं तो सोचो रोज़ रोज़ जामुन खाने वाला वो बंदर कितना मीठा होगा। वैसे भी मैंने बहुत दिनों से किसी का भी मांस नहीं खाया है इतना कहकर मगरमच्छ की बीवी अपने बूढ़े पति से बंदर का कलेजा लाने की जिद्द करती है।

याद रखें: (किसी भी जानवर का मांस खाना इंसानों द्वारा सबसे क्रूर काम है, ऐसा कभी न करें)

मगरमच्छ के बार बार मना करने के बावजूद वह उसकी एक न सुनी और अपनी जिद्द पर अड़ी रही, मगरमच्छ थक हारकर बंदर का कलेजा लाने के लिए निकल गया। मगरमच्छ बंदर के पास गया और बोला की आज मेरे बीवी तुमसे खुश होकर तुम्हारे लिए स्वादिष्ट भोजन बनाया है और तुम्हें चलना है। बंदर ये सुनकर खुशी खुशी मगरमच्छ की पीठ पर सवार हो गया। आधे रास्ते पहुंचकर मगरमच्छ ने बंदर को साफ साफ बता दिया की मेरी बीवी तुम्हारा दिल खाना चाहती है, तुम्हे खाने पे बुलाना सिर्फ एक बहाना था।

बंदर जैसे ही ये बात सुनता है वो तुरंत मगरमच्छ से बोलता है की,”मित्र तुम्हे ये बात पहले बतानी चाहिए थी मैंने तो अपना दिल पेड़ पर ही भूल आया हूं तुम पहले बोलते तो मैं उसे साथ लेकर आ जाता, लेकिन अब मुझे दिल लेने वापस से पेड़ पैर जाना होगा। यह सुनकर मगरमच्छ बंदर को वापस से पेड़ पर ले गया।

पेड़ पर चढ़ते ही बंदर ने मगरमच्छ से कहा,”मैं तो तुम्हे अपना सच्चा मित्र समझता था लेकिन तुम तो अपनी बीवी के हाथों मेरी बलि चढ़ाना चाहते थे। तुम तो इतने बड़े मूर्ख हो, तुमने ये कैसे सोच लिया की कोई अपना दिल निकालकर जिंदा रह सकता है। आज से तुम्हारी और मेरी कोई मित्रता नहीं है मैं तुम्हे नही जानता और ना ही तुम्हें जामुन खाने को मिलेगा। बंदर की बात सुनकर मगरमच्छ वहां से चला जाता है।

सीख

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है की हमे मुश्किल वक्त में कभी भी घबराना नहीं चाहिए, बल्कि समझदारी से काम लेना चाहिए। जिस तरह से बंदर ना घबराते हुए चतुराई और सूझबूझ से अपनी जान बचा ली।

चार गाय की कहानी

एक जंगल में चार गाए रहा करती थी, उन चारों में अच्छी और गहरी दोस्ती थी। वो सभी हमेशा साथ साथ में रहती और साथ साथ में चरती भी थी, और बिना किसी से लड़े झगड़े आपस में बांट कर खाती थी, एक दिन किसी बात को लेकर चारों गायों में लड़ाई हो गई जाती है और सभी अलग अलग दिशा में चरने के लिए चली जाती हैं।

एक शेर भी उसी जंगल में रहा करता था जो काफी समय से उन चारों गाय की तलाश में था, लेकिन चारों के साथ रहते हुई वो अपना शिकार ना कर पाता। एक दिन शेर ने गायों पर हमला किया था पर हार मान कर थका हारा वापस चला गया था। शेर को समझ आ गया था की जब तक ये चारों गाय एक साथ है तब तक वह उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

आखिरकार अब शेर को वो सुनहरा मौका भी मिल  गया था, शेर ये सब देख रहा था उसने सोचा की इन चारों को मारकर खाने का मौका इससे अच्छा अब कभी नही मिलेगा।

एक दिन शेर ने एक गाय को अकेले दूर जंगल में घास चरते हुए देखा और उसने गाय पर हमला किया, गाए अकेली थी वो जान गई की अकेले पड़ने की वजह से शेर से बच नहीं पाएगी। 

अंततः शेर ने उसे मार डाला  एक एक करके सभी गायों को मार के खा गया।

सीख

एकता में ही शक्ति है, अगर वो सभी एक साथ होते तो हर बार के तरह इस बार भी शेर उनका कुछ ना बिगाड़ पाता।

चालाक बकरी की कहानी

बहुत समय पहले की बात है एक गांव में सोलो नाम की एक बकरी रहती थी दिखने में तो वह भोली भाली थी लेकिन वह बहुत चालाक थी। वह सुबह से इधर उधर घूमती और शाम होते ही अपने मालिक के पास वैसा चली जाती।

एक दिन सोलो घास चरते चरते गांव के पास वाले जंगल में चली जाती है जहां सोलो को वह जंगल बहुत ज्यादा पसंद आ जाता है क्योंकि वहां उसके खाने के लिए ढेर सारी हरी भरी घास थी सोलो ने पेट भर घास खाया और वापस अपने घर की ओर आने लगी।

पर उसी जंगल में एक भेड़िया भी रहता था जो उस दिन भूख के मारे तड़प रहा था और एक अच्छे से शिकार की तलाश में गांव की ओर बढ़ रहा था तभी भेड़िए को बकरी दिखी उसकी खुशी का ठिकाना न था वह मुस्कुराते हुए सोचा आज तो बकरी खाने को मिलेगी।

सोलो बकरी ने देखा की भेड़िया उसकी ओर आ रहा था वो एकदम डर गई थी सोचने लगी आज तो ये मुझे मार ही डालेगा। लेकिन बकरी बहुत चालाक भी थी उसने अपना दिमाग दौड़ाया और भेड़िए से बचने का उपाय सोचा, कुछ ही देर में भेड़िया भी बकरी के पास आ गया और बोला,”क्या बात है बकरी तुम मुझे आते हुए देखी फिर भी न डरी और ना ही अपनी जान बचाकर भागी, मुझसे डर नहीं लग रहा है क्या?”

तभी सोलो बकरी ने बड़ी चतुराई से जवाब दिया,”भाग कर क्या होता वैसे भी तुम मुझे पकड़कर खा ही जाते, उससे अच्छा मैं यहीं हूं तुम मुझे बिना मेहनत किए पकड़कर खा सकते हो। ताकि मेरे मरने के बाद मैं स्वर्ग में जाकर सबको बता सकूं की मेरी मृत्यु एक बहादुर भेड़िए के हाथों हुए है। 

भेड़िए को बकरी की मीठी मीठी बातें बहुत ज्यादा पसंद आई और उसने बकरी से कहा की, “वैसे तो मैं किसी भी शिकार को पकड़ते ही मार देता हूं उसे बोलने का मौका नहीं देता हूं पर आज मैं ये मौका सिर्फ तुझे दे रहा हूं बता मरने से पहले तेरी कोई आखिरी इच्छा है की नही?

तभी सोलो बकरी अपनी मधुर आवाज में बोली, “आप कितने दयालु है मेरी एक ही आखिरी इच्छा है मैं मरने से पहले जोर जोर से गाना चाहती हूं क्या मैं गा सकती हूं?” तभी भेड़िए बोलता है,”बिल्कुल तुम गा सकती हो।” तभी बकरी ज़ोर ज़ोर से गाने लगती है।

सोलो की तेज आवाज गांव तक पहुंची और गांव के सभी लोग लाठी लेकर भागते हुए बकरी के पास आने लगे, यह देखकर भेड़िया डर गया और सोचने लगा की ये गांव वाले तो मुझे ही मार डालेंगे, इसलिए भेड़िया अपनी जान बचाकर वहां से भाग गया और गांव वालों ने उस बकरी को बचा लिया।

सीख

तो बच्चों इस तरह से बकरी की चतुराई और होशियारी से उसकी जान बच गई। किसी भी परिस्थिति में हमें डरना नहीं चाहिए बल्कि उसका डटकर सामना करना चाहिए।

दो घड़े की कहानी

नदी के किनारे एक छोटा सा गांव बसा हुआ था। लेकिन जैसे ही इस गांव में बरसात का मौसम आता पूरा गांव पानी से भर जाता। आखिरकार बारिश का मौसम आ गया, गांव में घनघोर बारिश होने के कारण नदी में बाढ़ आ गई, पानी धीरे धीरे पुरे गांव में भरने के कारण लोगों का मकान पानी में डूब गया। जिसकी वजह से लोगों को किसी सुरक्षित स्थान पर भागना पड़ा।

गांव के पानी में लोगों के घर से सारे सामान भी बहने लगे उनमें से दो घड़े भी थे, जिसमें से एक घड़ा पीतल का था तो एक मिट्टी का। दोनों ही घड़े अपने आप को बचाने की कोशिश कर रहे थे। पीतल के कठोर और मजबूत घड़े ने जब मिट्टी के कमजोर घड़े को संघर्ष करते देखा तो सोचने लगा की मिट्टी का ये कमजोर घड़ा आखिर कब तक खुद को बाढ़ से बचाएगा? मुझे उसकी मदद जरूर करनी चाहिए।

फिर उसने मिट्टी के घड़ा से कहा,”सुनो मित्र, तुम मिट्टी के बने हुए हो और इसलिए बहुत कमज़ोर भी हो, बाढ़ के इस बढ़ती हुए पानी में तुम अधिक दूर तक नहीं जा पाओगे और डूब जाओगे। मेरी बात मानो और मेरे साथ ही रहो। मैं तुम्हें डूबने से भी बचा लूंगा.”

मिट्टी के घड़े ने पीतल को देखते हुए कहा,”मित्र, तुम यह मेरी सहायता के लिए यह आए उसके लिए धन्यवाद। लेकिन तुम्हारे आस पास रहना मेरी सलामती के लिए अच्छा नहीं है तुम ठहरे पीतल के घड़े और मैं मिट्टी का घड़ा। तुम मुझे कहीं ज्यादा मजबूत और कठोर हो गलती से भी हम आपस में टकरा गए फिर तो मैं वहीं चकनाचूर हो जाऊंगा।

इसलिए मैं तुमसे दूर रहूं इसी में मेरी भलाई है तुम मेरी सहायता के लिए आए उसके लिए एक बार फिर धन्यवाद! मैं स्वयं ही खुद को बचाने में पूरा प्रयास करता हूं अगर भगवान ने चाहा तो मैं किसी तरह नदी किनारे तो पहुंच ही जाऊंगा।

इतना कहने के बाद मिट्टी का घड़ा दूसरी दिशा में बहने का प्रयास करने लगा, और धीरे धीरे पानी के बहाव से नदी किनारे वह पहुंच ही गया। वहीं दूसरी ओर पीतल का भारी घड़ा भी प्रयास करता रहा, लेकिन पानी के तेज बहाव के कारण वह ख़ुद को संभाल नहीं पाया। जिसकी वजह से उसमें पानी भर गया और वह डूब गया।

सीख

विपरीत गुणों की अपेक्षा एक समान गुण वाले अच्छी मित्रता कायम कर पाते हैं।

चींटी और कबूतर की कहानी

तपती हुए दोपहर में प्यास से बेहाल एक छोटी सी चींटी पानी की तलाश में यहां वहां भटक रही थी। बहुत देर भटकने के बाद उसे एक आस दिखाई दी, उसे एक नदी दिखाई पड़ी और अब उसकी खुशी का ठिकाना ना था वो ख़ुश होकर नदी की ओर बढ़ने लगी। जब उसने नदी के किनारे पहुँचकर कल-कल बहता शीतल जल देखा, तो उस चींटी की प्यास और भी ज्यादा बढ़ गई।

लेकिन वह सीधे नदी में नहीं जा सकती थी इसलिए वो किनारे पड़े एक पत्थर पर चढ़कर पानी पीने का प्रयास करने लगी, लेकिन इस प्रयास में वह अपना संतुलन खो बैठी और नदी में गिर पड़ी। जैसे ही वो नदी में गिरी उसे अपनी मौत दिखाई पड़ने लगी थी क्योंकि नदी के पानी में वह गिरते ही तेज धारा में बहने लगी, लेकिन तभी कहीं से एक बड़ा सा पत्ता चींटी के सामने आकर गिरा।

किसी तरह से तो वो उस पत्ते पर चढ़ गई थी। वह पत्ता नदी किनारे एक पेड़ पर बैठे एक कबूतर ने फेंका था जिसने चींटी को पानी से तड़पते हुए नदी के पास आते हुए देखा था और वह उसके प्राण बचाना चाहता था।

चींटी उस पत्ते के साथ बहते हुए नदी के किनारे पर आ गई और खुद को सूखी जमीन पर पहुंच गई, कबूतर के इस निस्वार्थ भावना से किया गया सहायता के करण चींटी की जान बच गई, मन ही मन उस कबूतर को धन्यवाद कहने लगी।

इस घटना को बीते हुए अभी कुछ ही दिन हुए थे तभी एक दिन बहेलिए के द्वारा बिछाए हुए जाल में कबूतर फंस जाता है, कबूतर ने अपनी जान बचाने के लिए खूब पंख फड़फड़ाए और बहुत ज़ोर लगाया लेकिन जाल के मजबूती के कारण जाल से निकलने में सफल ना हो सका तभी बहेलिए ने जाल उठाया और अपने घर की और निकल लिया। कबूतर एक निःसहाय सा जाल के अंदर कैद हो गया था।

तभी चींटी भी वहीं से गुजर रही थी उसकी नज़र जाल में फंसे हुए कबूतर पर पड़ी तो उसको वो दिन स्मरण हो गया जब कबूतर ने उसकी जान बचाई थी। चींटी तुरंत बहेलिए के पास जाती है और उसे ज़ोर ज़ोर से काटने लगती है बहेलिए दर्द से छटपटाने लगा और जाल पर उसकी पकड़ ढीली पड़ गई जिससे जाल सीधा जमीन पर जा गिरा।

अब कबूतर को उस जाल से निकलने का अवसर मिल गया थ, वह झटके में जाल से निकला और तेजी से उड़ान भर ली। जिस तरह से चींटी की जान कबूतर ने बचाई ठीक उसी तरह से चींटी ने कबूतर द्वारा किए गए उपकार का फल चुकाया।

सीख

हमेशा निस्वार्थ भाव से दूसरों की सहायता करनी चाहिए।

शेर के खाल की कहानी – Kids Story in Hindi

एक गांव था जहाँ शुद्धपट नाम का एक आदमी रहता था। उसके पास एक गधा था वह उस गधे से सुबह से लेकर रात तक बोझ लदवाता था। लेकिन शुद्धपट गरीबी के कारण उसके खाने पीने की व्यवस्था नहीं कर पाता था। गधा कहीं से भी इधर उधर करके अपना पेट भर लिया करता था।

एक दिन अपने किसी काम से धोबी कही जा रहा था, उसे एक मरे हुई शेर की खाल मिलती है। उसे देखकर धोबी ने सोचा की अगर मैं ये खाल अपने गधे को ओढ़ा दू तो सब उसे शेर समझकर उससे डरेंगे और इसे भगाएंगे भी नही। इस तरह से बिना किसी के डर और मुश्किलों के ये किसी के भी खेत में घास चर सकता है। 

उसने मरे हुए शेर की खाल उठा की और उसके बाद से वो हर रात अपने गधे को ओढ़ाकर गांव के खेतों में छोड़ने लगा। शेर की खाल में लोग गधे को शेर समझते और कोई भी उसके पास जाने या उसको मारने की हिम्मत नहीं करता।

जिससे गांव के सभी लोग उससे दूर भागते। गधा भी बड़े मजे से रात भर खेती में घास चरकर सुबह अपने घर चला आता था। इस तरह से धोबी और उसका गधा दोनों ही बहुत ज्यादा खुश रहते थे, दोनो के दिन बड़े मजे से बीत रहे थे।

एक रात गधा हमेशा की तरह शेर की खाल ओढ़कर एक खेत में घास चरने के लिए घुसा और बड़े मजे से घास चर ही रहा था तभी उसे कहीं से किसी दूसरे गधे की रेंकने की आवाज सुनाई पड़ती है और उसका मन भी रेंकने को मचल उठा और वो सब कुछ भूल भालकर रेंकने में मग्न हो गया।

तभी खेत के मालिक को गधे की रेंकने की आवाज सुनाई पड़ती है उसका रेंकने की आवाज है जिससे वह उस गधे को इतना पीटा की वो वही मर जाता है। इस प्रकार धूर्त आचरण के कारण गधे को अपने जान से हाथ धोना पड़ा और धोबी को अपने गधे से। धोबी अब अकेला ही रह गया।

सीख

किसी का भी वेश बदलने से उसका मूल स्वभाव नहीं बदल जाता।

कोयले का टुकड़ा

अमित एक मध्यम वर्गीय परिवार का लड़का था वह बहुत ज्यादा मेहनती और आज्ञाकारी छात्र था। लेकिन, अमित के नए कॉलेज में जाते ही का उसका व्यवहार बदल गया था अब वो ना किसी की सुनता था और ना पढ़ाई में उसका मन लगता था। यहां तक की वह अपने परिवार वालों से झूठ बोलकर पैसे भी लेने लगा था। अमित के ऐसे बर्ताव से उसका परिवार काफी ज्यादा चिंता में रहने लगा।

बाद में मालूम पड़ता है की उसके कॉलेज में कुछ ऐसे नए दोस्त बन गए है जो ध्रुम-पान, फालतू खर्च, लफंगे बाजी करने के आदि है जिनके संगत की वजह से अमित भी बुरी संगत में पड़ गया था। 

घर में सभी ने अमित को काफी समझाने की कोशिश की और उसे अपनी पढ़ाई में मन लगाने को कहा, लेकिन अमित को किसी की बात का कोई असर न होता, उसका बस एक ही जवाब था,”मुझे अपने अच्छे बुरे की समझ है मैं भले ही ऐसे लड़कों के साथ रहता हूं पर मुझपर उनका की असर नहीं होता है!”

दिन बीतते चले गए और अमित के परीक्षे का दिन भी आ गए, अमित ने अपनी परीक्षा से कुछ दिन पहले मेहनत की लेकिन उसके लिए इतना काफी नहीं था वह एक विषय में फेल हो गया। हमेशा अच्छे नम्बर से पास होने वाले अमित के लिए उसका फेल होना किसी जोरदार झटका से कम नहीं था। ना ही वह अब बाहर निकलता, ना किसी के साथ खेलता और न ही बात करता, अमित एकदम टूट गया था।

सुबह से लेकर रात तक वह अपने कमरे में बैठे कुछ सोचता रहता। अमित का ऐसा हाल देख उसका परिवार और भी चिंता में रहने लगे। सभी ने उसे पिछला रिजल्ट भूलकर आगे मेहनत करने की सलाह दी, लेकिन अमित इस सदमे से निकल ही नहीं पा रहा था उसे जैसे सांप सूंघ गया था।

जब ये बात अमित के पिछले कॉलेज के प्रिंसिपल को पता चली तो उन्हें यकीन नहीं हुआ, क्योंकि अमित उनके प्रिय छात्रों में से एक था। उन्हे अमित के लिए बहुत बुरा लग रहा था तभी प्रिंसिपल ने तय कर लिया की अमित को इस स्थिति से निकलकर रहेंगे।

एक दिन उन्होंने अमित को अपने घर बुलाया। प्रिंसिपल सर अपने घर के बाहर अंगीठी ताप रहे थे, तभी अमित जाकर चुपचाप उनके पास बैठ जाता है। आधे घंटे बीत गए दोनों में से किसी ने कुछ नहीं कहा, फिर अचानक प्रिंसिपल सर उठे और अंगीठी में से कोयले के एक धधकते हुए टुकड़े को चिमटे से निकलकर बाहर मिट्टी में डाल दिया।

वो टुकड़ा कुछ डर गर्मी दिया अंततः वह ठंडा पड़ गया, ये देखकर अमित उत्सुक होकर बोला,”प्रिंसिपल सर आपने उस टुकड़े को मिट्टी में क्यों डाल दिया, अब तो वो बेकार हो गया अगर आप उसे अंगीठी में ही रहने देते तो वो गर्मी देने में काम आता!” अमित की बात सुनकर प्रिंसिपल सर मुस्कुराते हुए बोले,”बेटा कुछ देर अंगीठी के बाहर रहने से वो टुकड़ा बेकार नहीं हुआ है चलो तुम्हारे कहने पर वापस मैं इसे अंगीठी में डाल देता हूं।”

अंगीठी में जाते ही वो टुकड़ा धधकते हुए जल गया और एक बार फिर से गर्मी देने लगा। कुछ समझे अमित, प्रिंसिपल सर बोले,” तुम भी उस कोयले के टुकड़े के जैसे हो, जब तुम उन बुरे लड़कों की संगत में नही थे तो तुम मेहनत करते थे, अपने माता पिता की बात सुनते थे और अच्छे नंबरों से पास भी होते थे। पर जैसे वो टुकड़ा थोड़े देर के लिए मिट्टी में चला गया और बूझ गया। वैसे तुम भी गलत संगत पे पड़ गए और उसके परिणाम स्वरूप तुम फेल हो गए।

पर एक बार फेल हो जाने से तुम्हारे अंदर के वो सारे गुण खत्म नहीं हो गए, जैसे कोयले का वो एक टुकड़ा मिट्टी में रहने से भी खराब नहीं हुआ, और अंगीठी में वापस डालने पर धधकते हुए जल गया

तुम भी उसी तरह अच्छी संगत में रहकर दोबारा से मेहनत करके उस मुकाम को हासिल कर सकते हो, फिर से एक मेधावी छात्र बन सकते हो। अपनी ताकत को पहचानो और उसे सही जगह पर लगाओ, खूब मेहनत करो और अपने एक सही लक्ष्य चुनो।” 

अंततः अमित को अब सारी बात समझ में आ चुकी थी वह उठा और प्रिंसिपल सर का चरण स्पर्श किया और घर की ओर चल दिया।

सीख

कभी कभी ऐसी बातें जो हम पर असर नहीं करती है वो बातें कहानी के जरिए हमारे दिमाग पर गहरा प्रभाव डाल देती है।

बहरा बीरबल – Bachhon Ki Kahani

एक बार राजा अकबर और बीरबल दोनों लोग बगीचे में टहल रहे थे। तभी अकबर ने बीरबल से पूछा,” बीरबल मैं कभी कभी भरी सभा में तुम्हारा मजाक उड़ा देता हूं क्या तुम्हें बुरा नहीं लगता। तभी बीरबल ने जवाब दिया,”महाराज जब भी कोई मुझे बुरा भला कहता है या मेरी बुराई करता है तब मैं बेहरा हो जाता हूं। अकबर ने फिर कहा,” ऐसा क्यों बीरबल तुम क्या कह रहे हो कुछ समझ नहीं आ रहा है।” तभी बीरबल ने कहा,”महाराज मैं आपको एक कहानी सुनाता हूं।”

कुछ मेंढकों का झुंड कही जा रहा था अचानक से उनमें से दो मेढक एक गड्ढे में गिर जाते हैं फिर सभी मेंढकों ने उन दोनों को निकालने की बहुत कोशिश की लेकिन निकाल नही पाए। तभी मेंशकों ने कहा कि ये गढ्ढा बहत ज्यादा गहरा है अब तुम लोग कभी भी बाहर नहीं निकल पाओगे। इसलिए अब तुम दोनों अपने बाहर निकलने की प्रयास छोड़ दो।

उन दोनों मेंढकों ने किसी की बात नहीं सुनी और बाहर निकलने की कोशिश ने जुड़ गए, कभी यहां कूदते कभी वहां जोर जोर से गड्ढे से निकलने का प्रयास करने लगे। उनकी कोशिश देखकर ऊपर के सभी मेंढक चिल्ला कर बोले,”तुम दोनो पागल हो चुके हो, व्यर्थ ही कोशिश कर रहे हो, क्यों अपनी शक्ति बर्बाद कर रहे हो। अब हार मान लो क्योंकि दोनों को जीवन भर अब इसी गड्ढे में रहना होगा।

इतना सुनकर उन दोनों में से एक मेंढक ने ऊपर वालों की बात मान ली और उदास होकर एक कोने जाकर बैठ गया। लेकिन दूसरे मेंढक ने हार नहीं मानी और उछलता गया, उपर वाले मेंढकों ने उसे फिर से वही बात कही लेकिन वह उछलता ही रहा उसने अपना प्यास जारी रखा और आखिरकार वह बाहर आ ही गया।

उसके बाहर आते ही सभी मेंढकों ने उसे घेर लिया और पूछने लगे,”तुमने कैसे किया।” तभी उस मेंढक ने खुशी खुशी से उतर दिया,” तुम्ही लोगों ने तो मेरा उत्साह बढ़ा रहे थे की और कोशिश करो तुम बाहर निकल सकते हो!” तभी सारे मेंढकों ने कहा,”नही हमने तो मना किया था की नही निकल पाओगे।

बातों बातों में सबको मालूम हुआ की मेंढक थोड़ा बहरा है। उसे लगा की सभी उसका उत्स बढ़ा रहे है इसलिए उसने अपना हिम्मत नही हारी। उसकी ये बात सुन सभी मेंढक दंग रह गए।

कहानी खत्म करते हुए बीरबल ने राजा से कहा,”महाराज इसलिए मैं भी बुरी भली बातों को सुनकर बेहरा होना ही सही समझता हूं हमेशा की तरह इस बार भी राजा अकबर बीरबल की इस बात से प्रभावित हुए।

सीख

इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है की लोग क्या कहेंगे, क्या सोचेंगे इन सब बातों का हम पर कोई असर नहीं होना चाहिए। अपने ऊपर विश्वास रखें, हमेशा अपनी प्रयास पर डटे रहे। एक न एक दिन आपको जरूर सफलता मिलेगी।

अर्जुन का अहंकार

एक बार की बात है अर्जुन को अपने ऊपर अहंकार हो गया की वो श्री कृष्ण के सबसे बड़े भक्त है। तभी कृष्ण को समझ में आ गया। एक दिन अर्जुन को अपने साथ सैर कराने ले गए, रास्ते में चलते समय उनकी मुलाकात एक गरीब ब्राह्मण से हुए जो दिखने में काफी अजीब था इसके कमर में एक तलवार लटक रही थी और वह सूखी घास चरे जा रहा था।

अर्जुन ने उस ब्राह्मण से पूछ,”आप तो अहिंसा के पुजारी है जीव हिंसा के डर से सूखी घास चरके अपना गुजारा करते हैं फिर आप ये तलवार क्यूं लिए हैं? तभी ब्राह्मण ने अर्जुन से कहा,”मैं कुछ लोगों को दंडित करना चाहता हूं। अर्जुन ने फिर पूछ,”कौन हैं आपके शत्रु? तभी ब्राह्मण ने कहा, ‘मैं चार लोगों को ढूंढ रहा हूं, ताकि उन सभी से अपना हिसाब चुकता कर सकूं।

सबसे पहले मुझे नारायण की तलाश है वो मेरी प्रभु को कभी भी सोने नही देते, हमेशा भजन कीर्तन करके उन्हें जागते रहते हैं। फिर उसके बाद में द्रौपदी पर क्रोधित हूं मेरे प्रभु को उसने तभी बुलाया जब वो भोजन करने बैठे थे उन्हें तुरंत उसकी रखा करने जाना पड़ा।

फिर अर्जुन ने पूछा आपका तीसरा शत्रु कौन है?

वह है प्रह्लाद। जिसने मेरे प्रभु को गर्म तेल के कड़ाहे में प्रविष्ट कराया, हाथी के पैरों के नीचे कुचलवाया और आखिर में खंभे से प्रकट होने के लिए मजबूर भी किया। और मेरा आखिरी और चौथी शत्रु है अर्जुन। उसकी हिम्मत तो देखा उसने मेरे प्रभु को साथी बना डाल मेरे प्रभू की असुविधा का थोड़ा भी ख्याल ना रखा उसने। कितने क्यादा कष्ट और पीड़ा में हैं मेरे प्रभु। इतना कहकर ब्राह्मण के आंखें में आंसू आ जाते हैं।

यह दृश्य देखकर अर्जुन का घमंड चूर चूर हो गया और उसने तुरंत श्री कृष्ण से क्षमा मांगते हुई कहा ,”हे प्रभु! मुझे माफ कर दीजिएगा, मुझे बाहर घमंड हो गया था अपने ऊपर, इस संसार में न जाने कितने तरह के भक्त हैं आपके, मैं तो कुछ भी नहीं हूं।

सीख

हमें कभी भी किसी भी बातों को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। जितना है हमारे पास उसी में खुश रहना चाहिए।

राजा और चार रानियां 

एक राजा जिसका नाम कंवरपाल था उस राजा की चार रानियाँ थी। जिनका नाम था, गायत्री, सुनंदा, भैरवी एवम भानुमति। इन चारों में से राजा अपनी पत्नी भैरवी की बहुत मानता था। एक दिन राजा को शिकार करने का मन किया उसने भैरवी से कहा,” प्रिय! आज हमे शिकार करने का मन है और हम आपके साथ आज का पूरा दिन बिताना चाहते हैं। तभी भैरवी बोलती है,” ये तो बहुत अच्छा विचार है महाराज।”कई दिन हो गया हम आपके साथ बाहर नही गए, हम अभी सज के आते हैं। 

भैरवी बहुत ज्यादा दयालु स्वभाव की रानी थी वो नही चाहती थी की राजा किसी निर्दोष जानवर का शिकार करें। इसलिए उसने राजा के तरकश से सारे तीर निकाल दिए। जंगल में पहुंचकर रानी को वहां का शांति भरा वातावरण बहुत ज्यादा पसंद आया। तभी वो राजा से बोलती है,” यहां के जानवरों को मारकर पता नहीं क्या मिलता है आपको! फिर राजा ने कहा,” शिकार तो हमारा प्रिय खेल है। इससे शुर वीरों की शान बढ़ती है। वो दोनों आपस में बात कर ही रहे थे।

तभी अचानक एक बाघ के दहाड़ने की आवाज आती है। जैसे ही राजा ने अपना तिरकस उठाया उसमे तीर ही नहीं था वह चौक गया तभी बाघ रथ के और करीब आ गया, राजा बहुत हिम्मतवाला था। इसलिए वह बाघ से लड़ने भूमि पर उतर आया। काफी देर लड़ने के बाद आखिरकार राजा ने बाघ को मार डाला, लेकिन उस दौरान वह काफी घायल हो चुका था।

रानी तुरंत राजा को महल ले जाती है वहां पर किसी को विश्वास ही नही होता की राजा कंवरपाल को शिकार करने से चोट लग सकती है क्योंकि वो शिकार करने में माहिर था। तभी भानुमति ने भैरवी से पूछ,”ये सब कैसे हुआ दीदी आज महाराज शिकार पर घायल कैसे हो गए।” तभी भैरवी बताती है,” मुझे निर्दोष पशु की हत्या देखते हुए बहुत ज्यादा बुरा लगता है इसलिए मैने तरकश के सारे तीर निकाल दिए थे।” 

ये बात सुनकर रानी गायत्री ने कहा,”एक जानवर की जान के लिए आप अपने महाराज को मार डालेगी? कैसी पत्नी हैं आप। रानी को ये सब बातें सुनकर अच्छा नहीं लग रहा था। वहां राजा की तबीयत और खराब होती जा रही थी, और वैध को भी आने में समय था। रानी भैरवी को औषधियों का थोड़ा बहुत ज्ञान था तभी वो राजा के लिए औषधि बनाने चली जाती है कुछ पेड़ की छाल, नीम के पत्ते, कई तरह के जड़ी बूटियों से एक लेप तैयार करने के बाद उसने राजा को वो लेप लगा दिया, लेकिन तभी उसका असर एकदम उल्टा हुआ।

राजा का बुखार बढ़ने लगा ये सब देखकर तीनों रानियां भैरवी को बुरा भला बोलने लगती है। तब तक वैध जी भी आ जाते है और राजा की जांच के बाद वो बताते है की ये लेप न होता तो महाराजा की तबियत ठीक ना हो पाती। सभी रानियाँ पूछती है,”फिर इनका बुखार क्यूं बढ़ता जा रहा है।”इसपर वैद्य जी बताते है जब ये लेप लगता है तो शरीर को गरम करता है तभी इस औषधि के असर से बाघ का जहर निकलता है इस दवा का असर होने में थोड़ा समय जरूर लगता है। लेकिन असर पूरा होता है वैध जी की ये बात सुनकर सभी रानियों ने भैरवी से क्षमा मांगी और उसको धन्यवाद दिया।

कुछ दिनों में राजा पूरी तरह से ठीक हो गया, तभी रानी भैरवी उनसे क्षमा मांगती हुए कहती है,”मैं जीवों को मरता हुआ नही देख सकती हूं जानती आपको शिकार करना पसंद है लेकिन मुझे नहीं। इसलिए महाराज मैंने आपके तरकश से सारे तीर निकाल दिए थे मेरा इरादा आपको नुकसान पहुंचाना नहीं था।” राजा बोलते हैं,”आपका तरीका गलत हो सकता है लेकिन आपका इरादा नहीं, हम आपको वचन देते है हम तभी शिकार करेंगे जब कोई हिंसक पशु हमारे लिए घातक मालूम होगा।

सीख

याद रखें किसी की भलाई के चक्कर में उसका नुकसान ना कर बैठे। जैसे रानी भैरवी की इस मूर्खता से राजा कंवरपाल की जान भी जा सकती थी।

जैसे को तैसा

एक दिन एक अमीर आदमी को रास्ते में एक भिखारी भीख मांगता हुआ दिखाई पड़ा, उसकी उम्र भी कम थी। उस आदमी को भिखारी की हालत देखकर उसपर दया आ गई, उसने पूछा,”तुम्हारी ऐसी दशा कैसे हुए? भिखारी ने उस बताया की उसकी नौकरी छूट गई हैं और अब कोई और नौकरी भी नहीं है इसलिए उसको भीख मांगना पड़ रहा है।

अमर आदमी कोई व्यवसाय करता था उसने उसे अपने बिजनेस पार्टनर बनने का अवसर दिया, तभी भिखारी की खुशी के ठिकाना न था उसने तुरंत पूछा,” बताइए आप क्या काम करना है?” व्यवसाई ने कहा,”मेरे खेतों में गेहूं की फसल होती है, तुम शहर के बाजार में उसे बेच आना। मैं तुम्हें वहां जाने और रहने, दुकान खोलने का, खाने पीने का सारा खर्चा दिया करूंगा, फिर गेहूं बेचने पर जो धन मिलेगा। 

उसे हम दोनो आधा आधा बांट लेंगे बोलो मंजूर है। इतना सुने ही वो गरीब भिखारी खुशी खुशी उस व्यवसाई से पूछा,” मालिक आपका बहुत बहुत धन्यवाद लेकिन उस बंटवारे का हिस्सा कितना होगा। आपका नब्बे प्रतिशत और मेरा दस प्रतिशत।” भिखारी की ये बात सुनकर व्यवसाई हंसकर बोले,”नहीं मेरा दस प्रतिशत और तुम्हारा नब्बे प्रतिशत।”

मैं तो पहले से अमीर हूं तुम कुछ काम करेंगे तो तुम्हें उसका ज्ञान और समझ होगा, तुम्हे ईमानदारी का ज्ञान प्राप्त हो। अच्छे से काम करोगे तो तुम्हारा जीवन सुधर जाएगा। इसलिए मैं नब्बे प्रतिशत तुम्हें दे रहा हूं।”

उस भिखारी ने खुशी से अगली दिन से ही काम पे लग गया। गेहूं की अच्छी फसल होने के कारण अच्छी कमाई भी होती थी। तभी उसके मन में लालच आ गई, उसने सोचा,”सारी मेहनत मैंने की तो मै उस व्यवसाई को अपना दस प्रतिशत भी क्यों दू? देखा था तो काम मैंने किया अब सारा माल भी मेरा ही होगा।”

महीने के आखिर में जब व्यवसाई आकर भिखारी से अपना दस प्रतिशत मांगता है तब वो नाक सिकोड़कर कहा है कैसा दस प्रतिशत? काम मैंने किए तो पैसे भी मेरा ही हुआ ना। व्यवसाई ने मुस्कुराते हुए कहा,” अच्छा ठीक है मत दो लेकिन जिस दुकान में रहते हो इसका ही किराया मुझे दे दो, अगर ये भी नही देना चाहते तो जिस मकान में रहते हो इसका ही किराया दे दो।

गांव से शहर के बाजार तक जाने के लिए जो ट्रक भेजता रहा मैं उसी का खर्चा और जितना तुम्हे खिलाया पिलाया, और पहनाया उसका खर्च दे दो बाकी का कमाई का पैसा तुम अपने पास रख लो।

भिखारी ने तुरंत सब का हिसाब किया और यह देखकर दंग रह गया की उसे जितना भी फायदा हुआ था वो सब उस व्यवसाई को देना पड़ेगा। उसने फौरन व्यवसाई से अपनी गलती की माफी मांगी, लेकिन फिर भी व्यवसाई ने उसे बाहर निकाल दिया, एक बार वह फिर से भिखारी बन गया था।

सीख

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की भगवान ने हमें नाक, कान, आंख और बुद्धि सब कुछ दिया है लेकिन हम सोचते हैं सब हमने अपने बलबूते पर किया है। हमें कभी भी एहसान फरामोशनगी होना चाहिए।

तोतली परी

परी लोक की दुनिया में पीहू नाम की एक परी रहा करती थी वह जब भी अपने दोस्तो से मिलने जाती सब उसका मजाक उड़ाया करते थे। पीहू परी को बहुत ज्यादा बुरा लगता था। एक दिन वो अपने सारे दोस्ती से मिलने उनके पास जाती है और बोलती है,”तलो धूमने तलते हैं।” उसकी ये बातें सुनकर सभी परियां पीहू परी पर हंसने लगती हैं। जिससे पाई उदास होकर वहां से चली जाती है।

तभी उसकी एक बेस्ट फ्रेंड पीहू के पास आती है और पीहू को एक सलाह देकर बोलती है तुम एक काम करो कुछ दिनों के लिए पृथ्वी लोक में चली जाओ। अपने दोस्त की बात मानकर वो पृथ्वी लोक में एक साधारण लड़की बनके चली जाती है। तभी रस्ते में आदि नाम के लड़के की नजर पीहू पर पड़ती है वो पीहू देखते ही उससे दोस्ती करने के लिए पूछता है तभी पीहू परी अपनी गर्दन हिलाकर हां बोल देती है।

उसके बाद से दोनों एक दूसरे से मिलने शुरू कर देते है फिर एक दिन आदि पीहू परी को अपनी मां से मिलवाने अपने घर ले जाता है और बोलता है,” ये पीहू है और मैं इसी से शादी करना चाहता हूं। उसकी मां आदि के खुशी के लिए मान जाती हैं और दोनो की शादी हो जाती है। शादी की अगली सुबह आदि के पीहू की आवाज़ के बारे में मालूम पड़ता है जिससे वो बहुत उदास होकर बैठ जाता है।

तभी उसकी मां आकर आदि से पूछती है,”क्या हुआ बेटा इतने परेशान क्यों लग रहे हो।” आदि कुछ बोलता उससे पहले पीहू बोल देती है,” अले छाछू मां तोई दात नही है ये तो बिला वदेह ही पलेछान हो लहे हैं।”इतना सुनते ही उसकी मां आदि को ही उल्टा सुनाती है,”तुम ही ने कहा था ना में इसी से शादी करूंगा। अब जीवन भर इसे ही अपना बाबू और शोना बोल।

तभी आदि बोलता है,” मैं अपने दोस्तों के सामने इसे कैसे लेकर जाऊंगा।”इतने में पीहू परी आदि की एक सुझाव देती है की वो पहले जैसे चुप रहेगी और कुछ नही बोलेगी। पारी का ये सुझाव दोनों मां बेटे को पसंद आता है चूर दोनों अपने दोस्त के घर जाते हैं। चारों दोस्त खाना खा रहे होते है, तभी आदि के दोस्त की बीवी पीहू से उसका नाम पूछती है आदि को डर था की कहीं वो कुछ बोल ना दे। इसलिए सबके कुछ भी पूछने पर आदि उसका जवाब तुरंत देता। 

तभी दोस्त की बीवी बोलती है,”ये जब से यहां आई है कुछ नही बोल रही है कहीं गूंगी तो नहीं है।” उसकी ये बात सुनकर पीहू परी को बहुत बुरा लगता है और आदि के बात संभाल लेने पर बात वहीं खत्म हो जाती है। सब लोग खाना खा ही रहे थे इतने में आदि के दोस्त का एक चंचल बेटा जो काफी देर से पीहू की देखे जा रहा था उसने सोचा हैं कैसे भी करके आवाज़ सुनकर रहूंगा, तभी उसने एक प्लास्टिक का छू पीहू परी के पैरों के पास छोड़ देता है। 

तभी चूहा के टकराते ही पीहू ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगती है,”अले तुहा पकलो इत्ते, तात लेडा मूढ़े।” बदमाश बच्चा पीहू की आवाज सुनकर ज़ोर ज़ोर से हंसने लगता है तभी आदि फिर से उदास हो जाता है। तभी भाभी आदि को समझती है की तुम्हारी बीवी तोतली है क्या, तभी आदि अपनी सारी बात बताता है फिर वह बोलती है,”कोई बात नही आदि तोतलापन अब लाइलाज नहीं है आप इसे किसी डॉक्टर को दिखाइए ये ठीक हो जाएगी।

घिर अगले दिन ही आदि पीहू परी को एक अच्छी डॉक्टर को दिखाता है इलाज के बाद कुछ दिन में पीहू परी अच्छे से बोलने लगती है दोनों बहुत खुश हो जाते हैं। एक दिन पीहू परी अपनी पूरी बात आदि को बता देती है,” मैं परी लोक से आई हूं तोतली होने के कारण सब मुझपर हस्ते थे इसलिए मैं यहां पर आ गई थी। लेकिन आदि तुम चिंता मत करो तुमने मेरी इस बीमारी का इलाज करवाया है अब मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगी तुम्हे छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी। इतना सुनकर आदि खुश ही जाता है और दोनों एक साथ खुशी खुशी रहने लगते हैं।

सीख

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की चाहे वो इंसान हो या जानवर हमें किसी का भी मजाक नहीं उड़ाना चाहिए। जो चीज हमें कुदरत ने दी है वही हमारा है।

चालाक मछली की कहानी – Kids stories in Hindi

एक दिन गोपाल नाम का एक मछुआरा अपनी जाल के साथ मछली पकड़ने के लिए नदी किनारे जाता है। वह सोचता है की कुछ मछलियां मिल जाएंगी जिसे वो बाजार में बेचकर अच्छे खासे पैसे कमा लेगा। यही सब सोचकर गोपाल मन ही मन बहुत ज्यादा खुश हो रहा था। तभी उसके जाल में एक हलचल सी होने लगी। 

उसे लगा की बहुत ढेर सारी मछलियां फसी होंगी पर जैसे ही उसने जाल ऊपर की ओर खींचा उसने देखा की एक छोटी सी मछली पकड़ी गई जो की इसके जाल में आ फंसी थी। गोपाल का मुंह छोटा सा हो गया उसे बहुत सारे मछलियों की चाह थी पर उसके हाथ एक ही मछली आई।

तभी गोपाल को दिखाई पड़ता है की छोटी मछली उससे कुछ बोल रही है तभी गोपाल उसके पास जाता है फिर मछली बोलती है कि “मछुआरे मुझे छोड़ दो! मैं तो एक छोटी सी जान हूं तुम्हारे किसी काम नही आऊंगी, मुझे खा के ना ही तुम्हारा पेट भरेगा और ना ही मन और मुझे बेचने पर भी ज्यादा पैसे नहीं पाओगे। तुम मुझे आज जाने दोगे तो मैं कल तुम्हारे लिए अपने साथ बहुत सारी मछलियां को लेकर आऊंगी”।

मछुआरा लालच में आ जाता है और ढेर सारे मछलियों के सपने देखने लगता है, वह सोचता है, अरे वाह! अगर मैं आज इसे छोड़ दू तो मुझे कल कई सारी मछलियां प्राप्त होंगी। जिनको मैं बाजार में बेचकर बहुत सारे पैसे कमाऊंगा। फिर वह उस छोटी सी मछली को जाने देता है। इस तरह से मछली ने बड़ी ही चालाकी और सूझबूझ से अपनी जान बचा ली।

सीख

ऐसी कठिन परिस्थितियों में समझदारी और थोड़ी सी चालाकियों से काम लेना चाहिए, बिना सोचे समझे कोई भी काम नहीं करना चाहिए।

जरूरी बात: (मछली या किसी भी अन्य जीव की हत्या और शोषण सबसे बुरे कामों में से एक है, ऐसा कभी न करें)

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निष्कर्ष:

bacchon ki kahani सुनने और समझने का अलग ही मजा होता है। अगर आप अपने बच्चों को जिदंगी की सही सीख देना चाहते हैं तो बच्चों की कहानियां उन्हें जरूर सुनाए और हर एक कहानी के सीख को समझाएं।

सांसारिक ज्ञान को गहराई से समझना एक होशमंद व्यक्ति की पहचान होती है और उस व्यक्ति का निर्माण बचपन से ही करना पड़ता है इसलिए बच्चों को ऐसी बाल कहानियाँ जरूर सुनाएं जो उन्हें होशमंद और आजाद व्यक्ति बनाता हो। 

कई बार ऐसा होता है की आपको बच्चों की अच्छी कहानियां एक जगह नहीं मिलती है इसलिए अगर आप चाहें तो इस कहानी को अपने मोबाइल के होम स्क्रीन पर सुरक्षित करके रख सकते हैं।

हमे आशा है की यह ब्लॉग पोस्ट पढ़ने के बाद आपके सवाल बच्चों की कहानी (kids stories in hindi) दिखाएं इसका जवाब आपको आसानी से मिल गया होगा। अगर आपको यह कहानी अच्छी लगी है तो इसे अपने दोस्तों के साथ भी जरूर शेयर करें।

FAQ 

Q: भारत में बच्चों की सबसे लोकप्रिय बाल कहानियाँ कौन सी हैं?

Ans: भारत में कुछ सबसे लोकप्रिय बाल कहानियों में शामिल हैं:
पंचतंत्र: पशु दंतकथाओं का यह संग्रह भारतीय साहित्य के सबसे पुराने और सबसे प्रसिद्ध कार्यों में से एक है। यह बच्चों को ज्ञान, साहस और दृढ़ता जैसे महत्वपूर्ण मूल्यों के बारे में सिखाता है।
जातक कथाएँ: बुद्ध के पिछले जन्मों की ये कहानियाँ हास्य, रोमांच और नैतिक पाठों से भरी हैं।
रामायण: यह महाकाव्य कविता राम की कहानी बताती है। यह अच्छाई बनाम बुराई की एक उत्कृष्ट कहानी है, और यह बच्चों को कर्तव्य, सम्मान और प्रेम के महत्व के बारे में सिखाती है।
महाभारत: यह और भी लंबी महाकाव्य कविता दो प्रतिद्वंद्वी परिवारों, पांडवों और कौरवों की कहानी कहती है। यह क्रिया, रोमांच और साज़िश से भरा है, और यह बच्चों को परिवार, दोस्ती और क्षमा के महत्व के बारे में सिखाता है।

Q: बच्चों को बाल कहानियाँ पढ़कर सुनाने के क्या लाभ हैं?

Ans: बच्चों को बाल कहानियां पढ़ने के कई फायदे हैं:
1) उनकी कल्पनाओं का विकास 
2) विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं के बारे में ज्ञान 
3) दया, करुणा और ईमानदारी जैसे महत्वपूर्ण मूल्यों के ज्ञान 
4) उनकी शब्दावली और भाषा कौशल विकसित होती 
5) बच्चों के पढ़ने और समझ कौशल में सुधार होती है 

Q: मुझे बाल कहानियाँ कहाँ मिल सकती हैं?

Ans: ऐसी कई अलग-अलग जगहें हैं जहाँ आप बाल कहानियाँ पा सकते हैं। इसमे शामिल है:
* आपका स्थानीय पुस्तकालय
* बुकस्टोर्स
* ऑनलाइन वेबसाइट और संसाधन
* बच्चों की पत्रिकाएँ
* टेलीविजन
* रेडियो

Q: मैं अपने बच्चों को बाल कहानियाँ पढ़ने के लिए कैसे प्रोत्साहित कर सकता हूँ?

Ans: आप अपने बच्चों को बाल कहानियाँ पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। इसमे शामिल है:
* पढ़ने को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं।
* अपने बच्चों को ज़ोर से कहानियाँ पढ़कर सुनाएँ।
* अपने बच्चों को पुस्तकालय या किताबों की दुकान पर ले जाएं।
* अपने बच्चों की वे किताबें खरीदें जिनमें उनकी रुचि हो।
* अपने बच्चों को अपनी किताबें स्वयं चुनने दें।
* एक आरामदायक और आमंत्रित पढ़ने की जगह बनाएं।
* पढ़ने के अपने प्रयासों के लिए अपने बच्चों की प्रशंसा करें।

मुझे उम्मीद है कि ये अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न मददगार रहे होंगे। यदि आपके कोई अन्य प्रश्न हैं, तो कृपया बेझिझक पूछें।

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