गौतम बुद्ध की कहानी, सम्पूर्ण जीवन की सीख (2023) | Gautam Buddha Story in Hindi

गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में हुआ था और उनकी मृत्यु – 483 ईसा पूर्व में हुई, इन्हें महात्मा बुद्ध, भगवान बुद्ध, सिद्धार्थ व शाक्यमुनि नाम से भी जाना जाता है। गौतम बुद्ध एक आध्यात्मिक शिक्षक थे जो ईसा पूर्व छठी और पाँचवी शताब्दी के बीच भारत में रहे थे।

बुद्ध का जन्म एक धनी परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने ज्ञान प्राप्त करने के लिए अपने धन और स्थिति का त्यागकर संसार को जन्म-मरण और दुखों से मुक्ति दिलाने के सत्य मार्ग एवं दिव्य ज्ञान की खोज में रात्रि में राजपाठ का मोह त्यागकर वन की ओर चले गए।

जहां जाकर वह एक पेड़ के नीचे बैठ गए और प्रण किया कि जब तक उन्हें दुख के रहस्य का उत्तर नहीं मिल जाता, तब तक वह हार नहीं मानेंगे। वर्षों के कठोर ध्यान और अध्ययन के बाद, आखिरकार उन्होंने ज्ञान प्राप्त कर ही लिया, और वे सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध बन गए।

भगवान बुद्ध को बौद्ध धर्म का संस्थापक कहा जाता है, उनकी शिक्षाओं से बौद्ध धर्म का प्रचलन हुआ। बुद्ध सत्य, सदर्श व धर्म पर दृढ़ रहने की बात करते थे। बुद्ध के धर्म प्रचार से भिक्षुओं की संख्या बढ़ने लगी। बड़े-बड़े राजा-महाराजा भी उनके शिष्य बनने लगे। 

भिक्षुओं की संख्या बहुत बढ़ने पर बौद्ध संघ की स्थापना की गई और उन्होंने अनगिनत लोगों को अधिक नैतिक और करुणामय जीवन जीने के लिए प्रेरित किया है। बुद्ध के जीवन पर आधारित ऐसी कई कहानियाँ हैं (gautam buddha story in hindi) जिससे जनमानस भी आत्मज्ञान पा सकता है। आज हम आपको भगवान बुद्ध की कई अद्भुत कहानियों (buddha stories in hindi) से परिचित कराएँगे। 

ये कहानियां आपको जीवन के बारे में बहुत कुछ सिखा सकती हैं। गौतम बुद्ध ने लोगों बहुत सरल और प्रेम भाव से ज्ञान की बातें बताई। अगर आप gautam buddha ki kahani अच्छे से पढ़ना चाहते हैं तो मेरे इस ब्लॉग पोस्ट को अंत तक ध्यान से पढ़ें। 

गौतम बुद्ध कि प्रेरणादायक कहानियां – Gautam Buddha Ki Kahani

Gautam Buddha Ki Kahani

आगे आप ढेरों gautam buddha story in hindi पढ़ सकते हैं और आत्मज्ञान की ओर अग्रसर हो सकते हैं। गौतम बुद्ध की इन कहानियों से आप जीवन के महत्वपूर्ण सवालों के जवाब जान सकते हैं जैसे जीवन क्यों है? जीवन क्या है? जीवन का उद्देश्य क्या है?

तो चलिए बिना समय गवाएं बुद्ध के ज्ञान के महासागर में डुबकी लगाएँ और अपनी चेतना को आनंद के अद्भुत सैर पर ले चलें – gautam buddha biography in hindi.

मन का कीचड़

बहुत समय पहले की बात है एक बहुत गरीब इंसान था उसके साथ उसकी पत्नी और दो छोटे-छोटे बच्चे भी थे। उसका अपने परिवार का पालन पोषण करना बहुत कठिन हो गया था। उसका दिमाग काम नहीं करता था और मन भी अशांत रहने लगा। तभी उसने अपना घर छोड़ने का फैसला लिया। एक रात जब उसकी पत्नी और दोनों बच्चे सो रहे थे तो वो चुपचाप घर से चला गया।

रात में बिना किसी मंजिल के वो आदमी चलता रहा। तभी अचानक उसने देखा कि एक नदी किनारे भगवान बुद्ध अपने शिष्यों के साथ बैठे हैं उसी वक्त उसने निर्णय लिया कि वह अब संन्यासी हो जाएगा और भगवान बुद्ध का शिष्य बनकर यहीं रहेगा।

उसके बाद वह भगवान बुद्ध के चरणों में जाकर गिर गया और उनसे विनती करने लगा की वो उसे अपना शिष्य बनाकर अपने साथ ही रख लें। भगवान बुद्ध ने उस गरीब इंसान कि बात सुनकर उसे अपना शिष्य बनाकर अपने साथ रख लिया।

भगवान बुद्ध अपने शिष्यों के साथ आगे बढ़ते हैं, रास्ते में चलते-चलते थक गए थे सब रुक कर एक पेड़ के नीचे विश्राम करने लगते हैं तभी भगवान बुद्ध को गर्मी के मारे बहुत तेज प्यास लगने लगी, उन्होंने अपने नए शिष्य से कहा,”यहां पास में ही एक सरोवर है तुम जाकर वहां से पानी ले आओ”। भगवान बुद्ध का आदेश मानकर वह सरोवर से पानी लेने चला गया।

जब वह सरोवर के पास पहुंचा तो उसने देखा की कुछ जंगली जानवर सरोवर में उधम मचा रहे हैं, जैसे ही वह सरोवर के और पास गया सारे जानवर वहां से भाग जाते हैं लेकिन सरोवर में कीचड़ सड़े गले पत्ते ऊपर तैर रहे थे जिसके कारण उसका मन नही मान रहा था उसने सोचा,”इतना गन्दा पानी भगवान बुद्ध पियेंगे कैसे”, फिर वह बिना पानी लिए वापस लौटता है और आकर बुद्ध से बोलता है,”भगवान उस सरोवर में तो बहुत ज्यादा गंदा पानी है वो पीने लायक नहीं है”।

अपने शिष्य की बात सुनकर भगवान बुद्ध थोड़ी देर चुप होकर बोले,”जाओ उसी सरोवर से जाकर पानी लेकर आओ”,भगवान बुद्ध का आदेश मानकर वह वापस से सरोवर कि तरफ चला गया लेकिन वह मन में यही सोच रहा था कि,”भगवान बुद्ध इतने गंदे पानी को कैसे पिएंगे”, जैसे ही वह सरोवर के पास गया वह ये देखकर चौंक गया कि सरोवर का पानी एकदम निर्मल और स्वच्छ हो गया है और अपने स्वभाव में बह रहा है।

उसने पानी लिया और भगवान बुद्ध के पास आते ही उनसे प्रश्न करता है, “भगवान! थोड़ी ही देर में सरोवर का मैला पानी इतना साफ कैसे हो गया”। फिर बुद्ध ने उसे समझाते हुए कहा,”जब जानवर पानी में उधम मचाए हुए थे तब सरोवर का कीचड़ उभर आया था लेकिन कुछ देर शांत रहने पर कीचड़ फिर से नीचे बैठ गया और पानी पहले जैसे फिर से निर्मल और स्वच्छ हो गया, ठीक इसी तरह से हमारे मन की स्थिति भी ऐसी ही होती है, जीवन कि कठिनाइयों और भाग दौड़ हमारी मन में उथल पुथल पैदा कर देती हैं जिसके कारण हम बिना सोचे समझे गलत निर्णय ले लेते हैं, लेकिन कोई भी निर्णय लेने से पहले अगर हम अपने चित को शांत रखें और धैर्यपुरवक बैठकर सोचें तो हमारे मन की वो उथल पुथल भी पानी की कीचड़ की तरह नीचे बैठ जाती है और तब हम जो भी निर्णय लेते हैं वो हमेशा सही होता है, इसलिए बुरे समय में इंसान को अपना धीरज नही खोना चाहिए। 

भगवान बुद्ध की यह बातें सुनकर उसका दिमाग खुल जाता है और जब वह शांति से बैठकर सोचता है तो उसे अपनी ही गलती नजर आती है फिर उसे समझ में आता है कि उसने अपना घर छोड़ने का गलत निर्णय लिया था फिर वो भगवान बुद्ध के चरण स्पर्श करके उनसे आज्ञा लेकर अपने घर ओर वापस चला जाता है।


अछूत व्यक्ति

एक दिन गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ एकदम शांत होकर बैठे हुए थे, उन्हें इस तरह से बैठे देखकर उनके शिष्य चिंता करने लगे कि कहीं वह अस्वस्थ तो नहीं हैं तभी उनमें से एक शिष्य ने पूछा कि,”आज आप इस प्रकार मौन क्यों बैठे हैं क्या हम शिष्यों से कोई गलती हो गई है?”फिर अचानक उनमें से एक और शिष्य ने कहा,”भगवान! क्या आप अस्वस्थ हैं?”

इसपर भी बुद्ध ने कुछ नहीं कहा और मौन रहे, किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। सभी ने सोचा कि बुद्ध को आखिर हो क्या गया है। तभी अचानक से एक हांफता हुआ आदमी वहां पहुंचा, उसको बुद्ध के पास पहुंचने से पहले उनके शिष्यों ने उसे रोक लिया। शिष्यों के द्वारा रोकने पर वह आदमी जोर जोर से चिल्लाने लगा और बोला, “गुरुजी आप मुझे अंदर आने से रोक क्यों रहे हैं और मुझे अंदर आने की अनुमति क्यों नहीं मिल रही है।” एक शिष्य ने कहा,“हम तुम्हें गुरुजी की आज्ञा के बिना अंदर आने की अनुमति नहीं दे सकते हैं।”इतना सुनते ही वह व्यक्ति अब और भी ज्याडा जोर से चिल्लाने लगा, उसके चिल्लाने से बुद्ध को अपनी आँखें खोलनी पड़ी।

बुद्ध के आँखें खोलते ही उस आदमी ने अंदर आने की पूरी कोशिश कि लेकिन फिर बुद्ध ने अपनी शिष्यों से कहा,”इस इंसान को अंदर मत आने देना, यह आदमी अछूत है और ऐसे अछूत इंसानों को अपने धर्मसभा में आने कि अनुमति मैं नहीं देता। सभी शिष्य बुद्ध की यह बात सुनकर दंग रह गए, शिष्यों ने सोचा कि भगवान बुद्ध कब से छूत-अछूत जैसी बातों पर विश्वास करने लगे।

बुद्ध के कई शिष्यों ने उनसे पूछा,”हमारे धर्म में तो जात-पात का कोई भेद ही नहीं है, फिर वह अछूत कैसे हो गया?”फिर बुद्ध ने समझाया,”आज वह इंसान क्रोधित होकर यहां आया है और क्रोध से इंसान की एकाग्रता भंग हो जाती है, क्रोध में व्यक्ति मानसिक हिंसा कर बैठता है इसलिए जब तक वह क्रोध में रहता है वो अछूत ही माना जाएगा, इसलिए उसे कुछ समय एकांत में ही रहना चाहिए। क्रोध से भरा शिष्य भी बुद्ध कि सारी बातों को ध्यान से सुन रहा था अब उसे पश्चाताप हो रहा था अब वह समझ चुका था कि अहिंसा ही महान कर्तव्य और परम धर्म होता है उसे अपने किए गए व्यवहार पर बहुत पछतावा हो रहा था वह बुद्ध के चरणों में जा गिरा और आगे से क्रोध ना करने कि शपथ ली।

बुद्ध का यही मतलब था कि क्रोध में आदमी अनर्थ कर देता है ऐसा कुछ कर देता है जो उसे नही करना चाहिए, हालांकि बाद में उसे अपने किए पर पछतावा होता है असली मायने में देखा जाए तो क्रोधित व्यक्ति अछूत हो जाता है और ऐसे में उसे अकेला ही छोड़ देना चाहिए, क्रोध करने से तन, मन, और धन तीनों का नुकसान होता है।


मारने वाले से बचाने वाले का अधिक अधिकार 

एक दिन राजकुमार सिद्धार्थ अपने चचेरे भाई देवदत्त के साथ बाग घूमने के लिए निकल पड़े, सिद्धार्थ का स्वभाव कोमल हृदय का था लेकिन देवदत्त झगड़ालू और कठोर स्वभाव का था, सिद्धार्थ के स्वभाव के कारण सभी उसकी बड़ाई करते थे, लेकिन देवदत्त कि कोई नही करता था। इसी वजह से मन ही मन देवदत्त सिद्धार्थ से जलता था।

बाग में दोनों घूम ही रहे थे तभी अचानक उन्हें एक हंस दिखाई दिया जो उड़ रहा था, हंस को उड़ता हुआ देखकर सिद्धार्थ बहुत खुश हुए ही थे तभी अचानक से देवदत्त ने अपने कमान पर तीर चढ़ाया और हंस कि तरफ छोड़ दिया, तीर सीधा जाकर हंस को लगा जिससे वह छटपटा कर नीचे गिर गया और घायल हो गया, सिद्धार्थ ने दौड़ते हुए हंस को उठाया और उसके शरीर से बहते हुए खून को साफ किया फिर उसे पानी पिलाया, इतने में देवदत्त वहां पर आ जाता है और गुस्से से सिद्धार्थ कि तरफ देखते हुए बोलता है,”सुनो सिद्धार्थ! इसे मैंने तीर मारकर नीचे गिराया है यह हंस मेरा है इसे चुप चाप मुझे दे दो ।”

सिद्धार्थ ने हंस कि पीठ को सहलाते हुए कहा,”नही! मैं इस हंस को तुम्हें नहीं दे सकता, तुम निर्दयी हो इस बेचारे निर्दोष हंस पर तुमने तीर चलाया है अगर मैं इसे आकर ना बचाता तो इस बेचारे कि तो जान चली जाती। सिद्धार्थ की बातें सुनकर देवदत्त को और भी ज्यादा गुस्सा आने लगा, घूरते हुए उसने सिद्धार्थ से कहा,”देखो सिद्धार्थ! यह हंस मेरा है मैंने इसे नीचे गिराया है इसे मुझे दे और अगर नहीं दोगे तो मैं राज दरबार में जाकर तुम्हारी शिक़ायत करूंगा।”

देवदत्त के इतने कहने के बाद भी सिद्धार्थ ने उसे हंस नही दिया। जिसके बाद देवदत्त ने राजा शुद्धोदन के दरबार में जाकर सिद्धार्थ कि शिकायत कर दी। शुद्धोदन ने देवदत्त कि बात को ध्यानपूर्वक सुना और सिद्धार्थ को दरबार में आने का बुलावा भेजा, कुछ ही देर में सिद्धार्थ हंस को लेकर राज दरबार में आए। राज दरबार के उचे सिंहासन पर राजा शुद्धोदन बैठे हुए थे और आसपास के नीचे आसनी पर राज्यमंत्री, तथा अन्य पदाधिकारी बैठे थे और कई सैनिक हथियार लिए द्वार के निकट खडे थे।

शुद्धोदन के प्रश्न करने पर देवदत्त सर झुकाए बोला,”महाराज! इस समय जो हंस सिद्धार्थ के हाथ में है वो मेरा है मैंने इसे तीर मारकर नीचे गिराया था, सिद्धार्थ ने उसे तुरंत उठाकर उसपर अपना अधिकार जमा लिया, कृप्या मुझे मेरा हंस इससे वापस दिलाइए।” फिर राजा शुद्धोदन ने सिद्धार्थ की ओर देखा और बोलने की ओर संकेत किया,”सिद्धार्थ ने सर झुकाकर शांत स्वर में बोला,”महाराज! यह बेचारा हंस एकदम निर्दोष है बिना किसी को कष्ट पहुंचाया उड़ रहा था तभी देवदत्त ने तीर मारकर इसे घायल कर दिया।

मैंने इसका उपचार किया और इसके प्राण बचाए, मैं यह समझता हूं कि प्राण लेने वाले से अधिक प्राण बचाने वाले का अधिकार होता है, मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि यह हंस मेरे पास ही रहने दिया जाये, मैं इसे अच्छी तरह से स्वस्थ करके आकाश में उडा देना चाहता हूं। शुद्धोदन ने अपने सभा-सदों से विचारविमर्श किया, वो सभी एक ही स्वर में बोले,”राजकुमार सिद्धार्थ का कहना बिलकुल ठीक है महाराज! जीवन लेने वाले से ज्यादा बचाने वाले का अधिक अधिकार होता है अंततः हंस राजकुमार सिद्धार्थ के पास ही रहने देना चाहिए। राजा शुद्धोदन ने सभासदों की बात मान ली, और फिर उन्होंने सिद्धांत को अपने साथ हंस ले जाने कि अनुमति दे दी।


महात्मा बुद्ध की सीख

एक स्त्री थी उसका इकलौता बेटा था वह भी मर गया, वह छटपटाती रोते बिखलाते हुए महात्मा बुद्ध के पास उनके चरणों में गिरकर रोते हुए बोली,”महात्मा जी! आप किसी भी तरह से मेरे बेटे को जीवित कर दें।” तभी महात्मा बुद्ध ने उसके प्रति सहानुभूति दिखाते हुए कहा,”तुम शोक मत करो!, बुद्ध ने उस महिला को सत्य से अवगत कराते हुए बोले,”मैं तुम्हारे बेटे को अभी जीवित कर दूंगा, लेकिन मेरी एक शर्त है तुम किसी ऐसे घर से भिक्षा के रूप में कुछ भी ले आओ जहां पर कभी किसी कि मृत्य ना हुई हो।”

बुद्ध कि बात सुनकर उसे कुछ तसल्ली हुई वह दौड़कर गांव पहुंची। अब वह ऐसा घर खोजने लागी जहां पर किसी कि मृत्य ना हुई हो, उसने बहुत ढूंढा लेकिन उसे ऐसा कोई भी घर नही मिला। अंततः वह निराश होकर भगवान बुद्ध के पास वापस लौट आई और उसने सारी बातें बुद्ध को बताई, फिर बुद्ध बोले,”यह संसार का चक्र है यहां पर जो आता है उसे एक ना एक दिन अवश्य ही जाना पड़ता है तुम्हें इस दुख को धैर्यता से स्वीकार करना चाहिए।

आखिरकार महिला को बुद्ध के वचन समझ में आ ही गए फिर उस महिला ने बुद्ध से सन्यास ले लिया और मोक्ष के रास्ते पर चलने लगी।


अमृत की खेती

एक बार भगवान बुद्ध भिक्षा मांगने के लिए एक किसान के पास पहुंचे, तथागत (सचाई के साथ सच्चाई के अवगत कराने वाले बुद्ध, जो तथागत कहें जाते हैं) को भिक्षा लेने के लिए आया देखकर किसान ने बुद्ध को अनदेखा करते हुए बोला,”श्रमण! मैं हल जोतता हूं और तब खाता हूं तुम्हें भी हल जोतना और बीज बोना चाहिए और घिर खाना खाना चाहिए।

उसकी बातें सुनकर बुद्ध ने कहा,”महाराज! मैं भी खेती ही करता हूं। “इसपर किसान के जानने की उत्सुकता हुए और वह बोला,”ना तो मैं तुम्हारे पास हल देखता हूं ना ही बैल और ना ही कोई खेती करने कि जगह, फिर आप ऐसे कैसे बोल सकते हो की आप भी खेती ही करते हो, कृप्या करके आप मुझे अपने खेती करने के विषय में समझाइए।”

बुद्ध ने कहा, “महाराज! मेरे पास श्रद्धा का बीज, तथा तपस्या रूपी वर्षा और प्रजा रूपी जोत और हल है… पापभीरूता का दंड है, विचार रूपी रस्सी है, स्मृति और जागरूकता रूपी हल की फाल और पेनी है मैं वचन और कर्म में गंभीर रहता हूं। मैं अपनी इस खेती को खराब घासों से आजाद रखता हूं, और आनंद की फसल काट लेने तक प्रयत्न करने वाला हूं और मेरा बैल ऐसा है जो बाधाएं देखकर भी पीछे मुंह नहीं मोडता है वह मुझे सीधा शांति धाम तक लेकर जाता है इसी प्रकार मैं अमृत की खेती करता हूं। 


उत्तम व्यक्ति कौन

यह बहुत पुरानी बात है गौतम बुद्ध एक शहर में प्रवास (अपने पूर्व रहने के स्थान को छोड़कर किसी दूसरे स्थान पर जाकर बसना) कर रहे थे उनके कुछ शिष्य भी उन्हीं के साथ थे। एक दिन शिष्य शहर में घूमने निकल गए, लेकिन उस शहर के लोगों ने उनके शिष्यों को बहुत बुरा भला कहा, शिष्यों को ये सब सहन नही हुआ और वो सब वापास लौट आए।

जब बुद्ध ने देखा कि उनके सभी शिष्य बहुत ज्यादा क्रोध में लग रहे हैं तब उन्होंने उनसे पूछा,”क्या बात है आप सभी इतने क्रोध में क्यूं दिखाई दे रहें हैं?” फिर उनमें से एक शिष्य ने क्रोधित होकर बोला,” भगवान! हमें यहां से तुरंत प्रस्थान करना चाहिए, जहां हमारा सम्मान न हो वहाँ हमें एक पल भी नहीं रहना चाहिए जब हम यहां बाहर घूमने के साथ गए तो यहां के लोगों ने हमें बहुत बुरा भला बोला, यहां के लोगों को दुर्व्यवहार के सिवा कुछ और आता ही नही है।”

उसकी बातें सुनकर गौतम बुद्ध मुस्कुराकर बोले,”क्या किसी और जगह पर तुम सदव्यवहार की आशा करते हो?”इसपर दूसरे शिष्य ने बोला,”इन लोगों से तो अच्छे ही होंगे, इनकी तरह तो नही होंगे।”फिर गौतम बुद्ध बोले,” किसी भी जगह को सिर्फ इसलिए छोड़ देना गलत होगा कि वहां के लोग दुर्व्यवहार करते हैं हम सभी तो संत हैं हमें कुछ ऐसा करना चाहिए, कि जिस स्थान पर भी हम जाएं, उस स्थान को हम तब तक नही छोड़े जब तक वहां के लोगों को सुधार ना दें।

हम जिस भी जगह पर जाएं वहां के लोगों का कुछ भला करके ही वापस लौटें, हमारे अच्छे व्यवहार के साथ वो लोग कब तक हमसे बुरा व्यवहार करते रहेंगे एक ना एक दिन उन्हें यह अहसास हो जाएगा कि हमें ऐसा व्यवहार नही करना चाहिए। आखिर में उन्हें सुधरना ही होगा। वास्तविकता में संतों का कार्य तो ऐसे लोगों को सुधारना ही होता है सही चुनौती वो होती है जब हम विपरीत परिस्थितियों में खुद को साबित कर सकें ।”

ये सारी बातें सुनकर बुद्ध के प्रिय शिष्य आनंद ने प्रश्न किया,”उत्तम व्यक्ति किसे कहते हैं?”इसपर बुद्ध ने जवाब दिया,”जिस प्रकार से युद्ध के मैदान में हाथी चारों तरफ के तीर सहते हुये भी आगे बढ़ता जाता है, ठीक उसी तरह उत्तम व्यक्ति भी दूसरों के अपशब्दों को सहते हुये अपना कार्य करता रहता है जो खुद को वश में करना सीख ले उनसे उत्तम कोई और नहीं हो सकता।”

अंततः सभी शिष्यों को गौतम बुद्ध की सारी बातें अच्छे से समझ में आ गई और उन्होंने उस शहर से जाने का इरादा त्याग दिया।


मौन का महत्व

एक बड़े ब्राह्मण विद्वान, मौलुंकपुत्र, एक दिन अपने पाँच सौ शिष्यों के साथ बुद्ध के पास आए। उसके मन में बहुत सारे प्रश्न थे, और उसे उनके उत्तर चाहिए थे। बुद्ध ने एक शर्त रखी – एक वर्ष तक मौन रहकर तब ही वह उत्तर देंगे।

मौलुंकपुत्र के मन में संदेह था – एक साल तक मौन रहना कठिन हो सकता था। और क्या पता उत्तर सही हो या नहीं? उसका एक दूसरा शिष्य, सारिपुत्र, हँसते हुए बोला, “तुम्हें इनकी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। ये धोखेबाज हैं, मैं भी इनके पास प्रश्न लेकर आया था इन्होने मुझे कहा था एक साल मौन रहो और ध्यान करो उसके बाद मेरे मन से सवाल चला गया और इन्होने मुझे कभी उत्तर नहीं दिया।”

बुद्ध ने समझाया, “मैं अपने वचन पर खड़ा रहूँगा। अगर तुम पूछोगे तो मैं उत्तर दूँगा। अगर तुम पूछते ही नहीं हो, तो मैं क्या कर सकता हूँ?”

एक वर्ष बीता, मौलुंकपुत्र ने ध्यान में पूरी तरह से खो दिया। भीतर की बातचीत समाप्त हो गई, और उसके मन के प्रश्न भी समाप्त हो गए। उसका वर्ष का इंतजार खत्म हो गया।

एक दिन बुद्ध ने कहा, “आज तुम्हारे वर्ष का आखिरी दिन है। आज ही को एक साल पहले तुम यहाँ आए थे और मैंने तुम्हें उत्तर देने का वचन दिया था। अब तुम प्रश्न पूछ सकते हो।”

मौलुंकपुत्र हँसने लगे और उन्होंने कहा, “तुमने मुझे भी धोखा दिया। वह सारिपुत्र सच कह रहा था। अब कोई प्रश्न ही नहीं बचा है। मेरे पास पूछने के लिए कुछ नहीं है।”

बुद्ध ने समझाया, “प्रश्न के अभाव में समस्याओं का अस्तित्व नहीं होता। समस्याएँ हमारे मन से होती हैं, हमारे विचारों से उत्पन्न होती हैं। जब हमारे मन के सारे प्रश्न गायब हो जाते हैं, तब हम सच्चे मौन में पहुँचते हैं।”

इसका मतलब है कि मन की अवस्था तब होती है, जब प्रश्न नहीं रहते, और उत्तर समाप्त होते हैं। मन के प्रश्नरहित स्थिति ही सबसे उत्तम होती है, जब आपके मन के उत्तरों की कोई आवश्यकता नहीं होती।

ध्यान का मकसद होता है प्रश्नों को दूर करना, जब आपके मन की बातचीत रुक जाती है, तो आपका मन एक निरंतर मौन की अवस्था में पहुँचता है, और उस मौन में सभी उत्तर छिपे होते हैं।

यदि आपके मन के प्रश्न गायब हो जाते हैं, तो समस्याओं का कोई आवश्यकता नहीं होती – सभी बातें स्पष्ट हो जाती हैं, और कोई समस्या बची नहीं रहती।

इसके माध्यम से हम सीखते हैं कि जीवन में सुख और समृद्धि के लिए हमें अपने मन की शांति और मौन का महत्व समझना चाहिए, क्योंकि वही सच्चे ज्ञान का मार्ग है।

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निष्कर्ष

तो दोस्तों आप सभी अच्छी तरह से जान गए होंगे कि गौतम बुद्ध कि कहानियां (Gautam buddha stories in hindi) आज के इस पोस्ट मैने आपको गौतम बुद्ध से जुड़ी ऐसी 7 शिक्षा और प्रेरणादायक कहानियां बताई है जो हमारे जिंदगी को एक सही लक्ष्य चुनने में मदद करेगी।

गौतम बुद्ध की कहानियों (बुद्ध कहानियां हिंदी में) लाखों लोगों को शांति, खुशी और पीड़ा से मुक्ति पाने में मदद की है। अगर आप भी गौतम बुद्ध और उनकी शिक्षाओं के बारे में अधिक जानने में जिज्ञासु हैं, तो ऐसी कई किताबें, वेबसाइटें और अन्य संसाधन  उपलब्ध हैं जो आपको ऐसे अद्भुत व्यक्ति और उनकी शिक्षाओं के बारे में और जानने में मदद कर सकते हैं। 

हमें आशा है की यह ब्लॉग पोस्ट को पढ़ने के बाद आपको गौतम बुद्ध के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी, अगर आपको ये जानकारी अच्छी लगी हो तो अपने सभी दोस्तों में शेयर करें।

FAQ’s

Q:गौतम बुद्ध का स्वभाव कैसा था?

Ans: सिद्धार्थ बचपन से ही करुणायुक्त और गंभीर स्वभाव के थे यहां तक कि बड़े होने पर भी उनकी प्रवृत्ति नहीं बदली। 

Q:बुद्ध की मृत्यु का कारण क्या था?

Ans: गौतम बुद्ध की मृत्यु जहर खाने से हुई थी। उन्होंने संक्रमित सूअर का मांस खाया था जिसे एक प्रतिद्वंद्वी संप्रदाय द्वारा जहर दिया गया था।

Q:गौतम बुद्ध की मृत्यु का कारण क्या था?

Ans:गौतम बुद्ध की मृत्यु जहर खाने से हुई थी। उन्होंने संक्रमित सूअर का मांस खाया था जिसे एक प्रतिद्वंद्वी संप्रदाय द्वारा जहर दिया गया था।

Q:गौतम बुद्ध का क्या महत्व है?

Ans: गौतम बुद्ध विश्व इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण  व्यक्ति थे जो विश्व के प्रमुख धर्मों में से एक बौद्ध धर्म के संस्थापक थे उनकी शिक्षाओं का दुनिया भर के लाखों लोगों पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा है उन्हें एक बुद्धिमान और दयालु शिक्षक माना जाता है जिन्होंने आत्मज्ञान का मार्ग दिखाया।

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