350+ संत कबीर दास जी के दोहे, हिंदी अर्थ सहित (2023) | Sant Kabir Das Ji Ke Dohe Hindi Mein

कबीर शाहब पृथ्वी पर जन्में उन चंद आत्म ज्ञानियों में से एक हैं जिन्होंने बेबाक तरीके से सत्य को दुनिया के सामने रखकर दुनिया को उसका आइना दिखाया और सोचने पर मजबूर किया। कबीर शाहब का जन्म 1498 को बनारस में हुआ था और उनके गुरु रामानंद से उन्होंने शिक्षा प्राप्त की थी। 

आज हम इस ब्लॉग पोस्ट में Sant Kabir Das Ji Ke Dohe के बारे में जानने वाले हैं हालाँकि Kabir Das Ji Ke Dohe संस्कृत भाषा में उपलब्ध है लेकिन मैंने हिंदी अनुवाद साथ में दिया है। 

कबीर जी के दोहे पढ़कर आप दुनिया को बहुत अच्छी तरह से समझ सकते हैं और माया को पहचान सकते हैं इसलिए यह जरुरी है की हर कोई kabir ke dohe Hindi Mein पढ़े। 

कबीर शाहब ने कहा है कि “सत्य” उस व्यक्ति के साथ है जो धार्मिकता के मार्ग पर है, सभी जीवित और निर्जीव को दिव्य मानता है, और जो दुनिया के मामलों से निष्क्रिय रूप से अलग है। सत्य को जानने के लिए, कबीर जी ने सुझाव दिया है की जो भी सत्य को जानना चाहता है उसे उसका “मैं”, या अहंकार छोड़ना होगा। कबीर जी की विरासत जीवित है और कबीर पंथ (“कबीर का मार्ग”) के माध्यम से जारी है। कबीर पंथ के सदस्यों को कबीर पंथी के नाम से जाना जाता है। 

350+ संत कबीर दास जी के दोहे – Sant Kabir Das Ji Ke Dohe Hindi Mein

चलिए बिना समय गवाए संत कबीर जी के दोहे पढ़ते हैं और अमृत वाणी का आनंद लेते हैं। 

दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ।

जो सुख में सुमिरन करे, दुख कहे को होय ।।

कबीर शाहब कह रहे हैं की दु :ख में तो ईश्वर को सभी याद करते हैं लेकिन सुख में कोई याद नहीं करता। लेकिन अगर आप ईश्वर को सुख में याद करेंगे तो फिर दुख नहीं होगा।

साई इतना दीजिये, जा में कुटुम समाय ।

मै भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाय ॥

कबीर शाहब ईश्वर से प्रार्थना करते हैं की हे परमेश्वर तुम मुझे इतना दो की जिसमे परिवार का गुजारा हो जाय। मुझे भी भूखा न रहना पड़े और कोई अतिथि अथवा साधू भी मेरे द्वार से भूखा कभी न लौटे।

गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।

बलिहारी गुरु आपनो, गोविन्द दियो बताय ।।

कबीर शाहब कह रहे हैं की गुरु और परमात्मा दोनों मेरे सामने खड़े हैं मैं किसके पाँव पड़ूँ? क्यूंकि दोनों हीं मेरे लिए समान हैं। लेकिन यह तो गुरु कि हीं बलिहारी है जिन्होने मुझे परमात्मा की ओर इशारा कर के मुझे गोविंद (ईश्वर) की कृपा के पात्र बनाया।

जाति न पुछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान ।

मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥

कबीर शाहब कहते हैं की किसी साधू से उसकी जाति न पुछो बल्कि उससे ज्ञान की बात पुछो। इसी तरह तलवार की कीमत पुछो म्यान को पड़ा रहने दो, क्योंकि तलवार का महत्व होता है म्यान का नहीं। 

सुख में सुमिरन न किया, दु:ख में किया याद ।

कह कबीरा ता दास की, कौन सुने फ़रियाद ॥

सुख में तो कभी याद किया नहीं और जब दुख आया तब याद करने लगे, उस दास की प्रार्थना कौन सुनेगा ।

कबीर माला मनहि कि, और संसारी भीख ।

माला फेरे हरि मिले, गले रहट के देख ॥

कबीर शाहब ने कहा है कि माला तो मन कि होती है बाकी तो सब लोक दिखावा है। अगर माला फेरने से ईश्वर मिलता हो तो रहट के गले को देख, कितनी बार माला फिरती है। सिर्फ मन की माला फेरने से हीं परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है ।

लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।

पाछे फिर पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ॥

कबीर शाहब कह रहे हैं की हे प्राणी, चारो तरफ ईश्वर के नाम की लूट मची है, अगर लूटना चाहते हो तो लूट लो, और अगर नहीं लूटोगे और जब समय निकल जाएगा तब तू पछताएगा। अर्थात जब तेरे प्राण निकल जाएंगे तो परमात्मा का नाम कैसे जप पाएगा ।

जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ तहाँ पाप ।

जहाँ क्रोध तहाँ काल है, जहाँ क्षमा तहाँ आप ॥

कबीर शाहब कहते हैं की जहाँ दया है वहीं धर्म है और जहाँ लोभ है वहाँ पाप है, और जहाँ क्रोध है वहाँ काल है। और जहाँ क्षमा है वहाँ स्वयं परमात्मा होते हैं।

जहाँ ग्राहक तंह मैं नहीं, जंह मैं ग्राहक नाय ।

बिको न यक भरमत फिरे, पकड़ी शब्द की छाँय ।।

कबीर शाहब कह रहे हैं की जहाँ ग्राहक हैं वहाँ मैं नहीं और जहाँ मैं वहाँ ग्राहक नहीं यानी मेरी बात को मानने वाले नहीं है। लोग बिना ज्ञान के भ्रम में फिरते रहते हैं। 

जाके जिभ्या बन्धन नहीं हृदय में नाहिं साँच ।

वाके संग न लागिये, खाले वटिया काँच ।।

जिसे अपने जीभ पर संयम नहीं और मन में सच्चाई नहीं, तो ऐसे मनुष्य के साथ आपको कुछ नहीं प्राप्त होगा। 

kabir ji ke dohe in hindi

जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय ।

यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय ।।

अगर आपका मन शीतल है तो संसार में आपका कोई दुश्मन नहीं है, अगर आप अपना घमंड उतार देंगे तो आपपर सब दया करेंगे। 

झूठे सुख को सुख कहै, मानता है मन मोद ।

जगत चबेना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद ।।

कबीर शाहब कहते हैं की लोग झूठे सुख को सुख मानते हैं और खुश रहते हैं लेकिन उन्हें यह नहीं पता की यह संसार समय का चबैना है जिसमें आधे ख़त्म हो चुके हैं और आधे बाकी हैं। 

जो तू चाहे मुक्ति को, छोड़ दे सबकी आस ।

मुक्त ही जैसा हो रहे, सब कुछ तेरे पास ।।

कबीर शाहब कह रहे हैं की अगर आप मुक्ति चाहते हैं तो सब की आस छोड़कर परमात्मा जैसा हो जाओ उसके बाद आप सब कुछ पा जाएंगे। 

जो जाने जीव आपना, करहीं जीव का सार ।

जीवा ऐसा पाहौना, मिले न दूजी बार ।।

जो अपने जीवन को समझता है वह अपने जीवन को राम को समर्पित कर देता है क्यूंकि उसे पता है दोबारा जीवन नहीं मिलेगा। 

जो जन भीगे राम रस, विगत कबहूँ ना रुख ।

अनुभव भाव न दरसे, वे नर दुःख ना सुख ।।

जैसे सूखे पेड़ पर फल नहीं लगता है वैसे ही बिना राम के कोई फल फूल नहीं सकता, और जिसके मन में राम नाम के सिवा दूसरा भाव नहीं है उसे सुख दुःख का बंधन नहीं है। 

तीरथ गए से एक फल, सन्त मिलै फल चार ।

सतगुरु मिले अधिक फल, कहै कबीर बिचार ।।

कबीर शाहब कहते हैं की जब कोई तीर्थ जाता है तो उसे एक गुना फल मिलता है, जब किसी को संत मिलते हैं तो उसे चार गुना फल प्राप्त होते हैं और जब किसी को गुरु मिलते हैं तो उसे कई गुना फल प्राप्त होते हैं। 

तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँव तले भी होय ।

कबहुँ उड़ आँखों पड़े, पीर घनेरी होय ।।

कबीर शाहब कह रहे हैं की तिनके का निंदा कभी नहीं करना चाहिए चाहे वह आपके पैर के निचे ही क्यों न हो, क्यूंकि अगर यह नेत्र में चला जाता है तो हमारे नेत्र को क्षति पहुंचा सकता है। 

ते दिन गये अकारथी, संगत भई न संत ।

प्रेम बिना पशु जीवना, भक्ति बिना भगवंत ।।

आपके जीवन के वो दिन जिसमें संत की संगत नहीं हुई वो व्यर्थ ही बीत गएँ, बिना प्रेम के आपका जीवन पशु समान है और बिना भक्ति के आपको भगवान नहीं मिल सकते अर्थात बिना भक्ति के आपका जीवन बेकार है। 

kabir ji ke dohe in hindi

तेरा साईं तुझ में, ज्यों पहुन में बास ।

कस्तूरी का हिरण ज्यों, फिर-फिर ढूँढ़त घास ।।

कबीर शाहब कहते हैं की जिस तरह फूलों में सुगंध रहती है वैसे ही तेरा भगवान् तेरे अंदर ही है लेकिन जैसे कस्तूरी  हिरण अपने अंदर छिपी हुई कस्तूरी को अज्ञान से घांस में ढूंढता है वैसे ही तू ईश्वर को अपने से बाहर खोजता है। 

तीर तुपक से जो लड़ै, सो तो शूर न होय ।

माया तजि भक्ति करे, सूर कहावै सोय ।।

कबीर शाहब कहते हैं की वह वीर नहीं है जो सिर्फ धनुष और तलवार से लड़ाई करता है, सच्चा वीर वो है तो माया को त्याग करके भक्ति करता है। 

तन को जोगी सब करे, मन को बिरला कोय ।

सहजै सब बिधिपाइये, जो मन जोगी होय ।।

तन से तो सभी जोगी होते हैं लेकिन कोई बिरला ही मन से जोगी होता है और जो मन से जोगी हो जाता है वह आसानी से सब कुछ पा लेता है। 

दिल का मरहम कोई न मिला, जो मिला सो गर्जी ।

कहे कबीर बादल फटा, क्यों कर सीवे दर्जी ।।

कबीर शाहब कहते हैं की इस संसार में ऐसा कोई नहीं मिला जो मन को शांति प्रदान कर सके जो भी मिला वो खुदगर्ज ही थें, संसार में स्वार्थियों को देखकर मन रूपी आकाश फट गया है इसे दर्जी नहीं सिल पाएंगे। 

तब लग तारा जगमगे, जब लग उगे नसूर ।

तब लग जीव कर्मवश, जब लग ज्ञान ना पूर ।।

जैसे जब तक सूर्योदय नहीं होता है तब तक आकाश में तारें दीखते हैं, इसी प्रकार जब तक जीव को पूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं होता है तब तक वह अपने कर्मों के वश में रहता है। 

तन बोहत मन काग है, लक्ष योजन उड़ जाय ।

कबहुँ के धर्म अगमदयी, कबहुँ गगन समाय ।।

मनुष्य का शरीर विमान के समान है और मन कागज के समान है कभी नदी में तैरता है तो कभी आकाश में उड़ता है। 

दुर्लभ मानुष जनम है, देह न बारम्बार ।

तरुवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे दार ।।

मनुष्य का जन्म बहुत दुर्लभ है और यह बार बार नहीं मिलता है जैसे पेड़ का पत्ता झड़ जाने के बाद दोबारा वही पत्ता पेड़ पर नहीं लग सकता है। 

दस द्वारे का पिंजरा, तामें पंछी मौन ।

रहे को अचरज भयौ, गये अचम्भा कौन ।

कबीर शाहब कह रहे हैं की मनुष्य के शरीर से प्राण वायु दस द्वारों से निकल सकता है और इसमें कोई अचरज की बात नहीं है। 

दया आप हृदय नहीं, ज्ञान कथे वे हद ।

ते नर नरक ही जायंगे, सुन-सुन साखी शब्द ।।

जिनके हृदय में दया नहीं है और ज्ञान की कथाएं सुनते हैं वे चाहे सौ शब्द ही क्यों न सुन लें उन्हें उनको नर्क ही मिलेगा। 

दया कौन पर कीजिये, कापर निर्दय होय ।

साईं  के सब जीव है, कीरी कुंजर दोय ।।

कबीर शाहब कह रहे हैं की आपको यह नहीं सोचना चाहिए की किसपर दया करें और किसके लिए निर्दयी हो जाएँ क्यूंकि सब ईश्वर के ही जीव हैं उन्हें समान मानना चाहिए। 

नहिं शीतल है, चंद्रमा, हिम नहिं शीतल होय ।

कबिरा शीतल संतजन, नाम स्नेही होय ।।

कबीर शाहब कह रहे हैं की न ही चन्द्रमा शीतल है और न ही हिम शीतल है, असली शीतलता तो संत के हृदय में होती है। 

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।

माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय ।।

कबीर शाहब कह रहे हैं की हे मन सब कुछ धीरे धीरे हो जाएगा जैसे माली पौधों को सौ घड़ा पानी से सींचता है लेकिन फल तो ऋतू में ही आते हैं। 

प्रेम पियाला जो पिये, सीस दक्षिणा देय ।

लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय ।।

जिस व्यक्ति के हृदय में प्रेम होता है वह प्रेम का प्याला पीता है और समय आने पर प्रेम को बचाने के लिए अपने सर को दक्षिणा के रूप में आहुति दे देता है लेकिन लोभी व्यक्ति प्रेम का सिर्फ नाम लेते हैं पर समय आने पर वह प्रेम को बचाने के लिए कुछ नहीं करते हैं। 

न्हाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाय ।

मीन सदा जल में रहै, धोये बास न जाय ।।

नहाने धोने से कुछ नहीं होता है जब तक आप मन का मैल यानी पाप नहीं धोएंगे जैसे मछली हमेशा पानी में रहती है लेकिन फिर भी उसका दुर्गन्ध नहीं जाता है। 

पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय ।

एक पहर भी नाम बिन, मुक्ति कैसे होय ।।

कबीर शाहब कहते हैं की मनुष्य पाँच पहर अपना व्यवसाय करता है और तीन पहर सोता है लेकिन प्रभु का नाम एक भी पहर नहीं लेता तो मुक्ति कैसे होगी। 

प्रेम न बारी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय ।

राजा परजार जोहि रुचे, सीस देइ ले जाए ।।

प्रेम न तो बगीचे में उगता है और न ही बाज़ार में बिकता है, राजा हो या प्रजा प्रेम उसे ही नशीब होता है जिसे अपने शीश की रुचिपूर्वक बलिदान स्वीकार हो। 

kabir ji ke dohe in hindi

पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित हुआ न कोय ।

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।।

कबीर शाहब कहते हैं की कितने ही लोग पुस्तकों का पाठ करते करते ख़त्म हो गए और पंडित नहीं हो पाए लेकिन जो प्रेम करना सीख लेता है वही असली पंडित होता है। 

पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात ।

देखत ही छिप जाएगा, ज्यों सारा परभात ।।

कबीर शाहब कहते हैं की मनुष्य का जीवन पानी के बुलबुले के समान है जो की कुछ ही पलों में खत्म हो जाता है जैसे सुबह होने पर सारा तारांगण छिप जाता है। 

पाहन पूजे हरि मिलें, तो मैं पूजौं पहार ।

याते ये चक्की भली, पीस खाय संसार ।।

कबीर शाहब कहते हैं की अगर सिर्फ पत्थर पूजने से हरी मिलते तो मैं पूरा पहाड़ पूजता, इससे अच्छा तो आंटा पीसने वाली चक्की का पूजन है जिसका पीसा हुआ आंटा सारा संसार खाता है। 

 पत्ता बोला वृक्ष से, सुनो वृक्ष वनराय ।

अब के बिछुड़े ना मिले, दूर पड़ेंगे जाय ।।

पत्ता पेड़ से बिछड़ते हुए कह रहा है की हे वृक्ष वनराय अब हम बिछड़ रहे हैं और कभी नहीं मिलेंगे मैं कहीं दूर हो जाऊँगा। इसमें कबीर शाहब कह रहे हैं की अभी मनुष्य योनि मिला है तो सही कर्म कर लो वरना इसके अलावा कौनसी योनि प्राप्त होगी नहीं पता। 

फल कारण सेवा करे, करे न मन से काम ।

कहें कबीर सेवक नहीं, चहै चौगुना दाम ।।

कबीर शाहब कह रहे हैं की जो व्यक्ति सिर्फ फल के लालच में सेवा करता है बिना मन से वो असली सेवक नहीं है। 

फुटो आँख विवेक की, लखें न संत असंत ।

जिसके संग दस बीच है, ताको नाम महन्त ।।

जिसे विवेक है उसके लिए संत और असंत के बीच अंतर् नहीं बचता है, लेकिन सामान्य मनुष्य जिसे दस लोगों के साथ देख लेता है उसे ही वह महान समझने लगता है। 

प्रेमभाव एक चाहिए, भेष अनेक बजाय ।

चाहे घर में बास कर, चाहे बन को जाय ।।

कबीर शाहब कह रहे हैं की आप कितने ही भेष बदलकर चाहे जंगल जाएँ या फिर घर में रहें लेकिन प्रेमभाव एक ही होना चाहिए। 

बन्धे को बाँधना मिले, छूटे कौन उपाय ।

कर संगति निरबंध की, पल में लेय छुड़ाय ।।

जिस प्रकार जब किसी बंधे हुए व्यक्ति को बंधा हुआ व्यक्ति मिले जाए तो वे लोग मुक्त होने के लिए एक दूसरे की मदद नहीं कर सकते हैं उसी प्रकार अगर आपको माया से मुक्त होना है तो ऐसे पुरुष की संगती करें जो की खुद माया से मुक्त हो। 

बूँद पड़ी जो समुद्र में, ताहि जाने सब कोय ।

समुद्र समाना बूँद में, बूझै बिरला कोय ।।

कबीर शाहब कह रहे हैं की यह तो सभी को ही पता है की समुद्र में बूँद समा जाता है लेकिन यह सिर्फ विवेकी पुरुष ही समझता है की किस प्रकार समुंद्र रूपी मन बून्द रूपी आत्मा में समा जाता है। 

बाहर क्या दिखराइये, अन्तर जपिए राम ।

कहा काज संसार से, तुझे धनी से काम ।।

कबीर शाहब कह रहे हैं की बाहर बाहर से राम का नाम लेने से कोई फायदा नहीं है अपने हृदय से राम का नाम लो, क्यूंकि तुम्हारा काम संसार से नहीं भगवान से है। 

बानी से पहचानिए, साम चोर की घात ।

अंदर की करनी से सब, निकले मुँह की बात ।।

आप सज्जन और दुष्ट व्यक्ति को उसकी बातों से ही पहचान सकते हैं क्यूंकि जो उसके मन में होता है उसी बात को अपने मुख से कहता है। 

बलिहारी गुरु आपने, घड़ी-घड़ी सौ बार ।

मानुष से देवत किया, करत न लागी बार ।।

कबीर शाहब कहते हैं मैं गुरु की बलिहारी सौ बार करता हूँ क्यूंकि उन्होंने मुझे मनुष्य से देवता बना दिया बिना देर किये। 

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर ।

पंछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ।।

कबीर शाहब कहते हैं खजूर पेड़ बहुत बड़ा होता है लेकिन पक्षी को छाया नहीं मिलता और फल बहुत दूर लगता है, उसी प्रकार जो बड़े आदमी होते हैं अगर वो कुछ सार्थक काम नहीं करते तो वे सब व्यर्थ हैं। 

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।

कर का मनका डार दे, मनका मनका फेर ।।

कबीर शाहब कह रहे हैं की लोग माला फेरते फेरते अपना जीवन निकाल देते हैं लेकिन फिर भी उन्हें सत्य की प्राप्ति नहीं होती है, अगर कोई सत्य की प्राप्ति चाहता है तो माल छोड़कर दिल से ईश्वर की आराधना करो। 

भक्ति गेंद चौगान की, भावे कोई ले जाय ।

कह कबीर कछु भेद नहिं, काह रंक कहराय ।।

कबीर शाहब कह रहे हैं की भक्ति दो पोलों के गेंद के समान है कोई भी ले जाए क्या फर्क पड़ता है इसी प्रकार राजा और कंगाल में भी भेद नहीं है चाहे कोई भी भक्ति करें। 

भूखा भूखा क्या करे, क्या सुनावे लोग ।

भांडा घड़ निज मुख दिया, सोई पूरण जोग ।।

कबीर शाहब कह रहे हैं की तुम खुद को भूखा भूखा कह कर दुनिया को क्या सुनाता है, जिस ईश्वर ने तुझे यह शरीर और मुख दिया है वही तेरे काम पूर्ण करेगा। 

माया मरी न मन मरा, मर मर गए शरीर ।

आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर ।।

कबीर शाहब कहते हैं की शरीर और माया अंत में मर जाता है लेकिन आशा, मन, और तृष्णा नहीं मरता है। 

मार्ग चलत में जो गिरे, ताको नाहीं दोष ।

कह कबीर बैठा रहे, ता सिर करड़े कोस ।।

मार्ग में चलते चलते जो गिर जाता है उसका कोई दोष नहीं है लेकिन जो बैठा रहता है और उसपर कोस बने रहते हैं उसके लिए कुछ करना न करने से अच्छा होता है। 

मैं अपराधी जन्म का, नख-सिख भरा विकार ।

तुम दाता दुख भंजना, मेरा करो सम्हार ।।

हे प्रभु।मैं तो इस जन्म का अपराधी हूँ मेरे शरीर में ऊपर से लेकर निचे तक विकार भरा है, आप सभी के दाता हैं आपही मेरा उद्धार करो। 

मूँड़ मुड़ाये हरि मिले, सब कोई लेय मुड़ाय ।

बार-बार के मूड़ते, भेड़ न बैकुण्ठ जाय ।।

कबीर शाहब कहते हैं की अगर सर के बाल छिलाने से हरी मिल जाते तो सब लोग अपने सर के बाल छिला लिए होते, जैसे भेड़ के शरीर के बाल को बार बार छिला जाता है फिर भी वह बैकुंठ नहीं पहुँचता। 

माया तो ठगनी बनी, ठगत फिरे सब देश ।

जा ठग ने ठगनी ठगो, ता ठग को आदेश ।।

कबीर शाहब कह रहे हैं की माया सभी देश को ठग लेती है लेकिन जो माया को ठग लेता है वही आत्मा है। 

भज दीना कहूँ और ही, तन साधुन के संग ।

कहैं कबीर कारी गजी, कैसे लागे रंग ।।

मन तो सांसारिक मोह, वासना में लगा हुआ है और शरीर ऊपर रंगे हुए वस्त्रों से ढँका हुआ है इस प्रकार की वेशभूषा से साधुओं का सारा शरीर धारण तो कर लिया है लेकिन इससे भगवान की भक्ति नहीं हो सकती है। कारी गंजी पर रग्ड़ नहीं चढ़ता भगवान से रहित मन बिना रंगा कोरा ही रह जाता है ।

माया छाया एक सी, बिरला जानै कोय ।

भागत के पीछे लगे, सन्मुख भागे सोय ।। 

कबीर शाहब कह रहे हैं की माया और छाया एक समान हैं इसे कोई बिरला ही समझ सकता हैं, माया अज्ञानी के पीछे लग जाती है परन्तु ज्ञानी से दूर भाग जाती है। 

जहाँ आपा तहाँ आपदा, जहाँ संशय तहाँ रोग ।

कह कबीर यह क्यों मिटे, चारों धीरज रोग ॥

कबीर शाहब कहते हैं की जैसे ही मनुष्य में घमंड हो जाता है उस पर आपत्तियाँ आने लगती हैं और जहाँ संदेह होता है वहाँ वहाँ निराशा और चिंता होने लगती है। कबीरदास जी कहते हैं की यह चारों रोग धीरज से हीं मिट सकते हैं ।

आया था किस काम को, तू सोया चादर तान ।

सूरत सम्हाल ऐ गाफिल, अपना आप पहचान ॥

कबीर शाहब कहते हैं की ऐ गाफिल ! तू चादर तान कर सो रहा है, अपने होश ठीक कर और अपने आप को पहचान, तू किस काम के लिए आया था और तू कौन है? स्वयं को पहचान और सही कर्म कर।

क्या भरोसा देह का, बिनस जात छिन मांह ।

साँस-साँस सुमिरन करो और यतन कुछ नांह ॥

इस शरीर का क्या भरोसा है यह तो पल-पल मिटता हीं जा रहा है इसीलिए अपने हर साँस पर हरी का सुमिरन करो और दूसरा कोई उपाय नहीं है।

गारी हीं सों उपजे, कलह, कष्ट और मींच ।

हारि चले सो साधु है, लागि चले सो नीच ॥

गाली से हीं कलह, दु:ख तथा मृत्यु पैदा होती है जो गाली सुनकर हार मानकर चला जाए वही साधु जानो यानी सज्जन पुरुष। और जो गाली देने के बदले में गाली देने लग जाता है वह नीच प्रवृति का है।

दुर्बल को न सताइए, जाकि मोटी हाय ।

बिना जीव की साँस सों, लोह भस्म हो जाय ॥

कबीर शाहब कहते हैं की कमजोर को कभी नहीं सताना चाहिए जिसकी हाय बहुत बड़ी होती है जैसा आपने देखा होगा बिना जीव के आग को हवा देने वाले पखें की साँस  यानी हवा से लोहा भी खत्म हो जाता है।

दान दिए धन ना घटे, नदी न घटे नीर ।

अपनी आँखों देख लो, यों क्या कहे कबीर ॥

तुम ध्यान से देखो कि नदी का पानी पीने से कम नहीं होता और दान देने से धन नहीं घटता।

अवगुण कहूँ शराब का, आपा अहमक़ साथ ।

मानुष से पशुआ करे, दाय गाँठ से खात ॥

कबीर शाहब कहते हैं की मैं तुमसे शराब की बुराई करता हूँ कि शराब पीकर आदमी स्वयं पागल होता है, मूर्ख और जानवर बनता है और जेब से रकम भी लगती है सो अलग।

बाजीगर का बांदरा, ऐसा जीव मन के साथ ।

नाना नाच दिखाय कर, राखे अपने साथ ॥

कबीर शाहब कह रहे हैं की जिस तरह बाजीगर अपने बन्दर से तरह-तरह के नाच दिखाकर अपने साथ रखता है उसी तरह मन भी जीव के साथ है वह भी जीव को अपने इशारे पर चलाता है।

अटकी भाल शरीर में, तीर रहा है टूट ।

चुम्बक बिना निकले नहीं, कोटि पट्ठ्न को फूट ।।

जैसे की शरीर में तीर कि भाला अटक जाती है और वह बिना चुम्बक के नहीं निकाल सकती इसी प्रकार तुम्हारे मन में जो खोट है वह किसी महात्मा के बिना नहीं निकल सकती, इसीलिए तुम्हें सच्चे गुरु कि आवश्यकता है।

कबीरा जपना काठ कि, क्या दिखलावे मोय ।

हृदय नाम न जपेगा, यह जपनी क्या होय ॥

इस लकड़ी की माला से ईश्वर का जाप करने से क्या होता है? यह क्या असर दिखा सकता है? यह मात्र दिखावा है और कुछ नहीं। जब तक तुम्हारा मन ईश्वर का जाप नहीं करेगा तब तक माला का जाप करने का कोई फायदा नहीं।

पतिव्रता मैली, काली कुचल कुरूप ।

पतिव्रता के रूप पर, वारो कोटि सरूप ॥

कबीर शाहब कहते हैं कि पतिव्रता स्त्री चाहे मैली-कुचैली और कुरूपा हो लेकिन पतिव्रता स्त्री की इस एकमात्र विशेषता पर समस्त सुंदरताएँ न्योछावर हैं ।

वैद्य मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार ।

एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम अधार ॥

कबीर शाहब कहते हैं कि बीमार मर गया और जिस वैद्य का उसे सहारा था वह भी मर गया। यहाँ तक कि सारा संसार भी मर गया लेकिन वह नहीं मरा जिसे सिर्फ राम का आसरा था। अर्थात राम नाम जपने वाला हीं अमर है।

हद चले सो मानव, बेहद चले सो साध ।

हद बेहद दोनों ताजे, ताको भाता अगाध ॥

जो मनुष्य सीमा तक काम करता है वह मनुष्य है। जो सीमा से अधिक कार्य की परिस्थिति में ज्ञान बढ़ावे वह साधु है । और जो सीमा से अधिक कार्य करता है, विभिन्न विषयों में जिज्ञासा कर के साधना करता रहता है उसका ज्ञान अत्यधिक होता है ।

राम रहे वन भीतरे, गुरु की पूजी न आस ।

कहे कबीर पाखंड सब, झूठे सदा निराश ॥

कबीर शाहब कह रहे हैं की बिना गुरु की सेवा किए और बिना गुरु की शिक्षा के जिन झूठे लोगों ने यह जान लिया है कि राम वन में रहते हैं अतः परमात्मा को वन में प्राप्त किया जा सकता है, कबीर शाहब कहते हैं यह सब पाखंड है। झूठे लोग कभी भी परमात्मा को ढूँढ नहीं सकते हैं, वे सदा निराश हीं होंगे ।

सुमरण से मन लाइए, जैसे पानी बिन मीन ।

प्राण तजे बिन बिछड़े, संत कबीर कह दिन ॥

कबीर शाहब कहते हैं कि जैसे मछली जल से एक दिन के लिए भी बिछ्ड़ जाती है तो उसे चैन नहीं पड़ता। ऐसे हीं सबको हर समय परमात्मा के स्मरण में लगना चाहिए।

समझाये समझे नहीं, पर के साथ बिकाय ।

मैं खींचत हूँ आपके, तू चला जमपुर जाए ॥

कबीर शाहब कह रहे हैं कि मैं तुम्हें अपनी ओर खींचता हूँ पर तू दूसरे के हाथ बिका जा रहा है और यमलोक कि ओर चला जा रहा है। मेरे इतने समझाने पर भी तू नहीं समझता ।

हंसा मोती विणन्या, कुंचन थार भराय ।

जो जन मार्ग न जाने, सो तिस कहा कराय ॥

सोने के थाल में मोती भरे हुए बिक रहे हैं। लेकिन जो उनकी कीमत नहीं जानते वह क्या करें, मोतियों को तो हंस रूपी जौहरी हीं पहचान कर ले सकता है।

नींद निशानी मौत की, उठ कबीरा जाग ।

और रसायन छांड़ि के, नाम रसायन लाग ॥

कबीर शाहब कह रहे हैं की हे प्राणी ! उठ जाग, नींद मौत की निशानी है। दूसरे रसायनों को छोड़कर तू ईश्वर के नाम रूपी रसायनों मे मन लगा।

दुर्लभ मानुष जनम है, देह न बारम्बार ।

तरुवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे डार ॥

कबीर शाहब कह रहे हैं की यह मनुष्य जन्म बड़ी मुश्किल से मिलता है और यह देह बार-बार नहीं मिलता। जिस तरह पेड़ से पत्ता झड़ जाने के बाद फिर वापस कभी डाल मे नहीं लग सकता। अतः इस दुर्लभ मनुष्य जन्म को पहचानिए और अच्छे कर्मों मे लग जाइए।

शीलवन्त सबसे बड़ा, सब रतनन की खान ।

तीन लोक की सम्पदा, रही शील मे आन ॥

जो शील यानी शान्त एवं सदाचारी स्वभाव का होता है मानो वो सब रत्नों की खान है क्योंकि तीनों लोकों की माया शीलवन्त व्यक्ति में हीं निवास करती है।

माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख ।

माँगन ते मरना भला, यही सतगुरु की सीख ॥

कबीर शाहब कह रहे हैं की माँगना मरने के बराबर है इसलिए किसी से भीख मत माँगो। सतगुरु की यही शिक्षा है की माँगने से मर जाना बेहतर है अतः प्रयास यह करना चाहिये की हमे जो भी वस्तु की आवश्यकता हो उसे अपने मेहनत से प्राप्त करें न की किसी से माँगकर।

माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय ।

इक दिन ऐसा आएगा, मै रौंदूंगी तोय ॥

मिट्टी कुम्हार से कहती है कि तू मुझे क्या रौंदता है। एक दिन ऐसा आएगा कि मै तुझे रौंदूंगी। अर्थात मनुष्य की मृत्यु के पश्चात मनुष्य का शरीर इसी मिट्टी मे मिल जाएगा।

कबीरा ते नर अन्ध हैं, गुरु को कहते और ।

हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥

कबीर शाहब कह रहे हैं की वे नर अंधे हैं जो गुरु को परमात्मा से छोटा मानते हैं क्यूंकि परमात्मा के रुष्ट होने पर एक गुरु का सहारा तो है लेकिन गुरु के नाराज होने के बाद कोई ठिकाना नहीं है।

कबीरा सोया क्या करे, उठी न भजे भगवान ।

जम जब घर ले जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान ॥

कबीर शाहब कह रहे हैं की हे प्राणी ! तू सोता रहता है जरा अपनी चेतना को जगाओ और उठकर भगवान को भज क्यूंकि जिस समय यमदूत तुझे अपने साथ ले जाएंगे तो तेरा यह शरीर खाली म्यान की तरह पड़ा रह जाएगा।

रात गंवाई सोय के, दिन गंवाई खाय ।

हीरा जनम अनमोल था, कौड़ी बदले जाय ॥

कबीर शाहब कह रहे हैं की रात तो सोकर गंवा दी और दिन खाने-पीने में गंवा दिया। यह हीरे जैसा अनमोल मनुष्य रूपी जन्म को तुमने कौड़ियो मे बदल दिया।

जो टोकू कांटा बुवे, ताहि बोय तू फूल ।

तोकू फूल के फूल है, बाकू है त्रिशूल ॥

कबीर शाहब कहते हैं की जो तेरे लिए कांटा बोय तू उसके लिए फूल बो। तुझे फूल के फूल मिलेंगे और जो तेरे लिए कांटा बोएगा उसे त्रिशूल के समान तेज चुभने वाले कांटे मिलेंगे। 

आए हैं सो जाएंगे, राजा रंक फकीर ।

एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बंधे जंजीर ॥

कबीर शाहब बता रहे हैं की जो आया है वो इस दुनिया से जरूर जाएगा वह चाहे राजा हो, कंगाल हो या फकीर हो सबको इस दुनिया से जाना है लेकिन कोई सिंहासन पर बैठकर जाएगा और कोई जंजीर से बंधकर। अर्थात जिनके जीवन में सत्य होगा वो तो सम्मान के साथ विदा होंगे और जो बुरा काम करेंगें वो बुराई रूपी जंजीर मे बंधकर जाएंगे।

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।

पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥

कबीर शाहब कह रहे है की जो कल करना है उसे आज कर और जो आज करना है उसे अभी कर। समय और परिस्थितियाँ एक पल मे बदल सकती हैं, एक पल बाद प्रलय हो सकती हैं अर्थात किसी कार्य को कल पर मत टालिए ।

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कबीर जी के दोहे जीवन भी बदलते हैं बस आपको उनके दोहे को ध्यान से पढ़ना होगा और समझना होगा। अगर आप भी अपने दृष्टि में प्रकाश लाना चाहते हैं तो Sant Kabir ji Ke Dohe को अच्छे से समझकर पढ़ें। 

हमें आशा है की यह ब्लॉग पोस्ट को पढ़ने के बाद आपके सवाल Kabir Das Ji Ke Dohe Hindi Mein इसका जवाब आपको आसानी से मिला होगा और संत कबीर दास जी के दोहे आपको समझ में आये होंगे। 

FAQ 

Q: कबीर दास जी का जन्म कहा और कब हुआ था?

Ans: इतिहासकारों के अनुसार कबीर दास जी का जन्म 1398 में बनारस में हुआ था। 

Q: कबीर दास जी कौन थे?

Ans: कबीर दास 15वीं शताब्दी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। उनके लेखन ने हिंदू धर्म के भक्ति आंदोलन को प्रभावित किया, और उनके छंद सिख धर्म के ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब, संत गरीब दास के सतगुरु ग्रंथ साहिब और कबीर सागर में पाए जाते हैं।

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